अध्यात्मवाद
by A Nagraj
अध्याय - 5
बन्धन और मुक्ति
बन्धन और मोक्ष शब्द लोक प्रसिद्ध है। इन दोनों मुद्दे पर बहुत कुछ कथन, वाङ्गमय, सर्वोपरि पावन ग्रंथ के रूप में और विभिन्न परम्परा में मान्यताओं के रूप में देखा गया। पहला, वस्तु के रूप में कौन सी चीज है जो बन्धन में पड़ा रहता हैं - मानव में सभी प्रकार के संकट का कारण है। दूसरा, वस्तु के रूप में ऐसा कौन-सा चीज है जो बाँधकर रखता है? तीसरा, वस्तु के रूप में वह कौन-सी चीज है जो मुक्ति दिलाता है?
यह तीनों ‘वस्तु’ के रूप में कहाँ है? क्यों ऐसे बन्धन कृत्य को करता है? जो बन्धन में था मुक्ति पाने के बाद उसका प्रयोजन क्या है?
स्वाभाविक तर्क है बन्धन में आने वाला यदि कोई वस्तु है, बाँधकर रखने वाला वस्तु उससे शक्तिशाली होना आवश्यक है। यदि बन्धन से मुक्त करने वाली कोई चीज है वह बाँधकर रखने वाले से भिन्न हो ऐसे स्थिति में वह उससे शक्तिशाली होना अनिवार्य है। इससे आगे की तर्क स्वयं-स्फूर्त होकर प्रस्तुत होता है जो बाँधता है वही खोल सकता (मुक्त करता) है। इस क्रम में बाँधने का क्या प्रयोजन है? अथ से इति तक बन्धन को क्लेश और दुख ही दुख बताया गया है।
यदि बाँधने वाले से भिन्न वस्तु बन्धन में आने वाला हो उसको क्लेश देकर क्या पाना है? क्लेशित होने वाले वस्तुओं को देखकर प्रसन्न होने वाली कोई वस्तु है वह बन्धन में आयी हुई वस्तुओं के क्लेशों को देखकर प्रसन्न होने की स्थिति में यही उदाहरण आता है। पशु मानव को जैसा राक्षस मानव प्रताड़ित करे, क्लेश उत्पन्न कर स्वयं अट्टहास करता है। ऐसे दृश्य को साहित्य, कथा, परिकथा, पुण्यकथा, चित्रकथा और अभिनयों के रूप में दूरदर्शन, मंचन और प्रकाशनों के रूप में भरपूर देखने को मिलता है। यह सब मानव की कल्पना, परिकल्पना प्रकारान्तर से मानव कृत्यों का आंकलन है और मानव से रचित कथा, परिकथा, पुण्य कथाओं के रूप में स्वीकारा हुआ स्थितियाँ देखने को मिलता ही है। यदि इसी तरीके की कोई वस्तु,