अध्यात्मवाद

by A Nagraj

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माने रहना, ऐसे मानने के लिये सम्मति देना, ये सब मूलत: अथ से इति तक भ्रम और गलतियाँ है।

जागृतिपूर्ण परंपरा में ही सार्वभौम धर्म-कर्म (मानवीयतापूर्ण धर्म-कर्म) तदनुरूप विचार शैली और व्यवहार तथा अनुभव ही संतुलित रूप और गति है। यह सर्वमानव में समान रूप से वर्तमान होना समीचीन है। यही जागृति परंपरा का स्वत्व है।

सम्पूर्ण भ्रम-निर्भ्रमता में और सम्पूर्ण गलती-सुधार में ही विलय को प्राप्त करते हैं। नेक इरादे से सम्पूर्ण आदर्शवादी परिकल्पना, दास और दासतावादी मानसिकता और यात्रा; सम्पूर्ण विज्ञान और भौतिक विचार, सुविधावादी मानसिकता के साथ-साथ प्रकृति पर शासन, दासतावादी मानसिकता से मानव पर शासन, अंततोगत्वा संघर्ष युग में अंत होता रहा। यही सभी गलतियों का अंतिम परिणाम रहा। इस दशक तक पुन: भाषा में इंगित कराए सुविधा और युद्ध ही मानव परंपरा को अपने पंजे में जकड़ लिया है। यही सम्पूर्ण गलती का फल है।

इन समस्त गलतियों का सुधार अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिन्तन ही है।

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