अध्यात्मवाद
by A Nagraj
हर परिवार मानव समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व पूर्वक परिवार परंपरा को निर्वाह करने योग्य है, चाहते हैं और इसे एक दूसरे के पूरक विधि से निर्वाह करते हैं, और कर सकते हैं। इसके लिए अनुभवमूलक प्रमाण, पद्धति, प्रणाली समीचीन है। इसे अनदेखी करते हुए यह मानना कि मूलत: मानव पराधीन है, वह सामान्य आकांक्षा (आहार, आवास, अलंकार) सम्बन्धी वस्तुओं से ही सम्पन्न हो सकता है इसलिये इसमें विपन्नता बना ही रहेगा। इनको सहायता की आवश्यकता है इसी मुद्दे पर नेतृत्व विधि से हर व्यक्ति की विपन्नता को जताना, लादना, मनवाना भ्रम है ही।
मानव जन्म से ही न्याय का याचक, सही कार्य-व्यवहार करने का इच्छुक और सत्य वक्ता होता है। परंपरा सहज विधि से (शिक्षा-संस्कार, संविधान और व्यवस्थापूर्वक) हर व्यक्ति में न्याय प्रदायी क्षमता, सही कार्य व्यवहार करने की योग्यता सत्यबोध करने-कराने की परमावश्यकता है। यह अनुभवमूलक मानव परंपरा में ही सार्थक होता है। इसे अनदेखी करते हुए हर व्यक्ति को जन्म से ही स्वार्थी, अज्ञानी और पापी इतना ही नहीं अपराधी, गलती करने वाला मानना, कहना, कहलाना, करने के लिये सम्मति देना भ्रम की पराकाष्ठा है।
हर व्यक्ति परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी करने के लिये इच्छुक है, उत्साहित है। इसी के साथ बैरविहीन, सामरस्यता पूर्ण ‘परिवार मानव’ के रूप में जीने देकर, जीना चाहता है। यह मानव सहज स्वतंत्रता और स्वराज्य का उद्गार रूप में सर्वेक्षित है। इसे सफल बनाने के लिये अनुभवमूलक विधि से समीचीन है। इसके विपरीत शक्ति केन्द्रित शासन-संविधान जिसकी मानसिकता यथास्थिति की अपेक्षा गलती और अपराध के लिये दण्ड विधान, पड़ोसी देश और धर्म को अपना विरोधी और शत्रु होना मानते हुए इसका प्रचार पूर्वक प्रतिबद्धताओें को अर्थात् गलत मान्यताओं को हर प्रकार से मनवाना, मानने के लिये मत देना, यह समूल भ्रम पाया गया।
हर मानव परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में कार्यरत, व्यवहाररत, परिवार और समग्र व्यवस्था में भागीदारीरत होने योग्य है और जागृति पूर्ण विधि से प्रमाणित होने योग्य है। इसके लिये अनुभवमूलक परंपरा विधि आवश्यक एवं समीचीन है।