अध्यात्मवाद

by A Nagraj

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प्रस्तुत करना एक आवश्यकता सदा-सदा से रही है। यह अवसर हमें प्राप्त होने का श्रेय, अथक प्रयास किया हुआ मानव परंपरा का ही देन है। इसलिये विगत को धन्यवाद, वर्तमान में प्रस्ताव एवं भविष्य के लिये सर्वशुभ योजना प्रस्तुत है।

यहाँ यह भी स्मरणार्थ प्रस्तुत कर रहे है कि ‘समाधि’ के उपरान्त भी सर्व शुभवादी कार्यक्रमों, उसके मूल में विचार शैली, उसके मूल में दर्शन, इन सबके धारक वाहक का ज्ञान को उद्घाटित करना संभव नहीं हो पाता है। समाधि और समाधि पर्यन्त मौन विधि साधना और सर्वाधिक मौन अवस्था को ही देखा गया है। क्योंकि निर्विचार स्थिति में शरीर, देश और काल का भास नहीं रहता है। इसमें अवश्य ही स्वान्त:सुख का आश्वासन पूरा होता है। उस स्थिति में यदि बोलना बनता है अर्थात् 10 घंटा, 15 घंटा, 20 घंटा समाधि के उपरान्त शरीर, देश, काल का बोध होने की स्थिति में बोलने पर यही लगता है जो कुछ भी रहस्यवादी वाङ्गमय लिखा गया है उसी को दोहराया जा सकता है और सर्व शुभ का कामना ही बन पाती है। समाधि के लिये एक व्यक्ति जितना साधना-अभ्यास किया उतना सभी को करने की बात होती है। इसी के साथ यह भी देखा गया है समाधि हर व्यक्ति को एक ही शरीर-यात्रा में सफल हो पायेगा या नहीं इसे निश्चय करना सम्भव नहीं है। इस अनिश्चयता का मूल कारण इस प्रकार पहचाना गया है कि जीवन एक अनूस्युत क्रिया है। आशा, विचार, इच्छा, ऋतम्भरा, प्रमाण जैसी शक्तियाँ अनुभव पश्चात् सदा-सदा शरीर के माध्यम से अपने को प्रकाशित करता हुआ देखा गया है। मौन विधि साधना पूर्णतया जीवन विरोधी प्रणाली है। प्रकृति में जीवन क्रियाकलाप कभी समाप्त नहीं होती। जीवन नित्य है, शरीर जीवन प्रकाशन के लिये एक घटना के रूप में समीचीन रहता है। शरीर रचना के बारे में वंशानुक्रमीय विधि से गर्भाशय में रचित होना देखा गया। इसलिये शरीर में आकार-प्रकार-रंग-रूप में विभिन्नता होना देखा गया है। जीवन रचना में परमाणु में गठनपूर्णता समान होना देखा गया है।

जीवन रचना समानता का तात्पर्य जीवन क्रियाकलाप के लिये जितने भी अंशों का परमाणु गठन में समाना आवश्यक रहता है वह सब इसमें समाये रहने के फलस्वरूप जीवन रचना में समानता को विधिवत् देखा गया है, समझा गया है। जीवन में होने वाली सामान्य क्रियाएँ शक्ति और बल के रूप में अध्ययन से बोध