अध्यात्मवाद

by A Nagraj

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“अनुभवात्मक अध्यात्मवाद” को अध्ययन करता हुआ मेधावियों के स्मरण में इस बात को ला रहे हैं कि प्रस्तावित चिन्तन-दर्शन, मध्यस्थ दर्शन, सहअस्तित्ववाद के नाम से तीनों वाद तीनों शास्त्र वाङ्गमय के रूप में प्रतिपादित, सूत्रित, व्याख्यायित विधि से प्रस्तुत कर चुके हैं। अतएव मानसिकता के आधार के रूप में भ्रमात्मक विधि से इस दशक तक मानव जो भुगत चुका है और प्रस्ताव के रूप में जागृति और अनुभव प्रमाण सहित जीने की आवश्यकता, उसकी सफलता के लिये सुयोजित मार्ग को प्रशस्त करना सर्वसुलभ करना ही हमारे प्रयासों का आशय है।

भ्रमित राज्य और धर्म के साथ व्यापार शोषणाधीन हो चुका है। व्यापार मानसिकता में शोषण का ही एकमात्र बुलंद आवाज है, उसमें सभी छल-कपट-दंभ-पाखण्ड समाया हुआ है। इसी क्रम में मानवेत्तर वस्तु व्यापार, मानव व्यापार, देह-व्यापार, धर्म व्यापार, ज्ञान व्यापार, तकनीकी व्यापार में अधिकाधिक व्यक्ति प्रवृत हो चुके हैं। इसका मूल कारण भ्रमित सामुदायिक परंपराएँ ही हैं। व्यापार विधि से हर मानव किसी न किसी का शोषण करता ही है। राज्य विधा में द्रोह-विद्रोह होता ही है। धर्म विधा में अपना पराया बना रहता है। इस शताब्दी के मध्यावधि से अभी तक सर्वधर्म सम्मेलन के नाम से अनेकानेक भाषण करने वाले विभूतियों को देखा गया है। सब अपने-अपने धर्म को श्रेष्ठ बताते हैं। कभी-कभी एक दूसरे को सराहते भी हैं। इसके बावजूद कौमी मजहबी संघर्ष, दूसरे विधि से कौमी मजहबी मानसिकता के आधार पर राज्यों के साथ संघर्ष, सत्ता हथियाने, दमन करने, तंग करने का प्रयास देखा गया है। जबकि मानव जाति एक है, धर्म एक है फलस्वरूप अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था, शांति, न्याय, सुरक्षा, समृद्धि, समाधान, सहअस्तित्व, वर्तमान में विश्वास जागृति सहज विधि से नित्य समीचीन है ही। यही अनुभवमूलक आदर्शवाद मानवीयता सहज समाधानात्मक भौतिकवाद का स्वरूप है। अनुभवमूलक विधि से ही जागृति का प्रमाण होना देखा गया है।

भ्रम पर्यन्त अधिकारों के प्रति पागल होने के अनंतर कम से कम कुछ लोगों को घायल किये बिना रहा नहीं जा सकता। मूलत: अधिकार तंग करने के अर्थ में ही ख्यात है। कुछ लोग तंग होने के लिये अर्थात् शोषित होने के लिये तैयार भी बैठे रहते हैं। मानव पुरूष हो या स्त्री हो वह सदा-सदा शरीर यात्रा काल में पाँच कोटि