अध्यात्मवाद
by A Nagraj
पर रासायनिक-भौतिक दबाव-प्रभाव प्रभावशील होता नहीं है। रासायनिक-भौतिक वस्तुओं का दबाव-प्रभाव, इन्हीं के आपस में प्रभावशील होना देखा गया है। यह निष्कर्ष स्वाभाविक रूप में धरती, वायु, जल को नियंत्रित रखने के लिये सद्-बुद्धिदायी सूत्र है। इसी के साथ वन, खनिज का संतुलन, उसका उपयोग प्रयोजन को संतुलित रखने का प्रतिष्ठा, अधिकार (जिम्मेदारी) स्वाभाविक रूप में मानव से निर्गमित होता है और प्रमाणित होता है। यह सब जागृति और उसकी प्रभावशीलन का क्रम और वैभव है। इस प्रकार अस्तित्व सहज रूप में जीवन एक गठनपूर्ण परमाणु होना, जिसमें ही मन, वृत्ति, चित्त, बुद्धि, आत्मा रूपी जीवन बल; आशा, विचार, इच्छा, ऋतंभरा और प्रमाण रूपी जीवन शक्तियाँ प्रमाणित होते हुए देखा गया है। अध्यात्म का परिभाषा सभी आत्माओं का आधार रूप में इंगित होना पाया जाता है क्योंकि सत्ता पारगामी है।
अस्तित्व में अनुभव विधि से यह तथ्य सुस्पष्ट हो जाता है कि जीवन एक गठनपूर्ण परमाणु है, इसमें मध्य में एक ही अंश कार्यरत है। सत्ता पारगामी होने के कारण, पदार्थ सत्ता को घेर नहीं पाता। इसका साक्ष्य यही है, किसी भी एक दूसरे के साथ भार बंधन का मूल में पाये जाने वाले चुम्बकीय धारा संबंध क्षेत्र से मुक्त होने के उपरान्त शून्याकर्षण स्थिति में स्पष्ट हो चुकी है। ऐसे स्थिति में हर वस्तु अपने ही गति और मात्रा के परिसीमन में निरंतरता को प्राप्त किया रहता है, जैसे यह धरती, सौर व्यूह है। यहाँ उल्लेखनीय तथ्य इतना ही है, व्यापक वस्तु भाग-विभाग होता नहीं है और इन चारों अवस्थाओं की प्रकृति अथवा किसी एक अवस्था की प्रकृति व्यापकता में से किसी एक अंश को घेर लेने में समर्थ नहीं है। इसीलिये इकाईयाँ सभी ओर से सीमित रहती है, ऐसे सीमाएँ व्यापक वस्तु में घिरा हुआ ही दिखाई पड़ता है। इस तथ्य से यह भी इंगित हुआ और स्पष्ट हुआ है कि सत्ता में प्रकृति अविभाज्य है और वर्तमान है। इस प्रकार अध्यात्म का तात्पर्य भी यही सार्थक समझ में आता है, व्यापक में अनंत का अविभाज्य वर्तमान। यह अध्ययन इसीलिये समीचीन है, रहस्य से नित्य कुण्ठित मानव परंपरा रहस्य मुक्ति चाहता ही रहा।
भोक्ता, भोग्य, भोग