अध्यात्मवाद

by A Nagraj

Back to Books
Page 149

यही है उभय प्रकार से जूझा हुआ सभी साधक अथवा सर्वाधिक साधक, सर्वसुख को चाहने वाले होते हैं।

इतने दीर्घकालीन परिश्रम से अभी तक सर्वसुख का मूलरूप अथवा सार्वभौम रूप को पहचानने में भी अड़चन रहा है क्योंकि रहस्य के आधार पर, उपदेश के आधार पर, प्रयोगशालाओं में स्थापित शक्तिशाली सूक्ष्मदर्शी दूरदर्शी और जितने भी क्षारीय अम्लीय किरण-विकिरण संयोग पाकर कार्य करने वाले रस रसायनों के विश्लेषणों से भी सर्वसुख विधि निकल नहीं पायी। करोड़ों में, अरबों में एक व्यक्ति रहस्यवादी विचारधारा के आधार पर स्वान्त: सुख विधि को पा चुके हैं क्योंकि यह स्थली हमें देखने को मिला है। इससे भी सर्वशुभ होने का रास्ता, दिशा, सूत्र, व्याख्या, अध्ययन विधि, प्रक्रिया परम्परा गम्य नहीं हो पायी। यह भी इसके साथ समीक्षीत हुई, कोई भी व्यक्ति स्वान्त: सुख को प्राप्त करने के बाद भी विभिन्न समुदायों के परस्परता में निहित द्रोह-विद्रोह, शोषण, युद्ध समाप्त नहीं हो पाया है। इतना ही नहीं हर समुदाय में निहित अन्तर्विरोध की शांति नहीं हो पायी। विज्ञानवाद युद्धोन्मुखी-संघर्षोन्मुखी होने के आधार पर इस शताब्दी के अंत तक सर्वाधिक प्रभावित रहा देखने को मिल रहा है। यही विगत का समीक्षा है। संघर्ष-युद्ध समाधान अथवा सर्वशुभ का आधार नहीं हो पाया।

जागृति विधि और अभ्यास

अस्तित्वमूलक मानव केन्द्रित चिन्तन ज्ञान, दर्शन, आचरण ध्रुवीकृत रूप में अध्ययन गम्य होना देखा गया है। जीवन ज्ञान जीवन में सम्पन्न होने वाली क्रियाओं का परस्परता सहज ध्रुव बिन्दुओं के आधार पर उभय तृप्ति विधि सर्व शुभ एवं समाधान से देखा गया अभिव्यक्तियाँ है। जैसा मन और तृप्ति में सामरस्यता का बिन्दु, विश्लेषण, तुलन पूर्वक आस्वादन के रूप में पहचाना गया है। यह सहअस्तित्व अनुभव के पश्चात् नियम, न्याय, धर्म, सत्य सहज प्रयोग में अनुभूत होने के उपरान्त ही सार्थक हो पाता है। इसके लिये अर्थात् ऐसे अनुभूति के लिये अध्ययन क्रम से आरंभ होता है। अध्ययन अवधारणा क्षेत्र का भूरि-भूरि वर्तमान विधि है। इस विधि से जितनी भी अवधारणाएँ अध्ययन से सम्बद्ध होता गया, उतने ही अवधारणा के आधार पर प्रवृत्ति सहज न्याय, धर्मात्मक और सत्य