अध्यात्मवाद

by A Nagraj

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क्रम अपने में विकास क्रम, विकास, जागृतिक्रम व जागृति ही है। यह सम्पूर्ण अभिव्यक्ति ही वर्तमान है।

कार्य, कारण, कर्ता : सहज मुद्दे पर भी मानव में चर्चा का विषय रहा है। ऊपर वर्णित दृष्टा, कर्ता, भोक्ता क्रम में कार्य, कारण, कर्ता का स्पष्ट कार्य प्रणाली समझ में आता है। यह मुद्दा रहस्यमय ईश्वर केन्द्रित विचार और अनिश्चियता मूलक वस्तु केन्द्रित विचार के अनुसार सदा-सदा प्रश्न चिन्ह के चंगुल में ही रहते आये। इसका भी कोई समाधान अध्ययनगम्य नहीं हो पाया था। अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित विचारधारा के अनुसार कार्य कारण का दृष्टा जीवन ही है। सत्ता में संपृक्त प्रकृति रूपी सहअस्तित्व ही कार्य, कारण के रूप में नित्य वर्तमान है। सहअस्तित्व ही कार्य का कारण रूप है। सहअस्तित्व ही कार्य रूप है। क्योंकि सहअस्तित्व में ही सम्पूर्ण नियति सहज क्रियाकलाप दृष्टव्य होना वर्तमान है। अस्तित्व नित्य वर्तमान है ही। अस्तित्व ही नित्य स्थिति रूप में सहअस्तित्व में ही नित्य गति रूप में जड़-चैतन्य प्रकृति होना स्पष्ट है। सहअस्तित्व ही अस्तित्व सहज सम्पूर्ण क्रियाकलाप का कारण है और सहअस्तित्व ही क्रियाकलाप है। अस्तित्व में केवल दृष्टा ही कर्ता पद में होना स्पष्ट है और अन्य सभी पद कार्य पद में ही प्रतिष्ठित है। कार्य-कारण-कर्ता में सामरस्यता ही दृष्टा पद प्रतिष्ठा का सूत्र बनता है। ऐसी प्रतिष्ठा में ही जीवन जागृति का प्रमाण अनुभवमूलक विधि से व्यवहार में ज्ञान प्रमाणित होना पाया जाता है। अतएव मानव ही कर्त्ता पद में है और सम्पूर्ण अस्तित्व ही कार्य-कारण पद में है। कार्य-कारण विधि से ही कर्त्ता पद प्रतिष्ठा ज्ञानावस्था में देखा गया है।

साधन, साध्य और साधक : का प्राचीन समय से चर्चा और अनुसरण की वस्तु (विषय) मानते हुए चले आता हुआ मानव परंपरा में स्पष्ट रूप में प्रस्तुत है। साधक के रूप में मानव को, साध्य के रूप में मानव व जीवन लक्ष्य को, साध्य और साधक के बीच में दूरी को घटाकर लक्ष्य सामीप्य, सान्निध्य, समरुप्य क्रम में प्रमाणित ही होने के क्रम में प्रयुक्त सभी उपाय साधनों के नाम से जाना जाता है। साधन के रूप में कल्पना किया गया सम्पूर्ण उपाय अनेकानेक उपायों का सम्मिलित स्वरूप में साधक होना देखा गया है। इस विधि में मानव बीसवीं