अध्यात्मवाद

by A Nagraj

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दंभ, पाखण्ड के रूप में मानव अपने को प्रस्तुत किया। यही आज की एक वीभत्सता का रूप है। इससे परिवर्तित होकर स्वतंत्रता, न्याय, समाधान और प्रामाणिकतापूर्ण अधिकार पाना ही अभीष्ट है। इसी तात्पर्यवश ‘अनुभवात्मक अध्यात्मवाद’ को विचारार्थ मानव के सम्मुख प्रस्तुत किया है।

न्याय का साक्षात्कार संबंध, मूल्य, मूल्यांकन, उभय तृप्ति के रूप में होने की प्रक्रिया है। यही न्याय प्रदायी क्षमता का द्योतक है। संबंध अपने में (सभी संबंध) परस्पर पूरक होना एक शाश्वत् सिद्धांत है। इसकी पुष्टि सहअस्तित्व, सहअस्तित्व में पूरकता सर्वमानव वांछित, अपेक्षित, वैभव है। ऐसी क्रियाएँ अर्थात् पूरक क्रियाएँ पुष्टिकारी, संरक्षणकारी, अभ्युदयकारी और जागृतिकारी प्रयोजनों के रूप में दिखाई पड़ती है। पुष्टिकारी कार्यों को शरीर पोषण, विचार पोषण, कार्य पोषण, आचरण पोषण, ज्ञान और दर्शन पोषण के रूप में देखने को मिलता है। यह पोषण विभिन्न संबंधों में घटित होता हुआ प्रत्येक व्यक्ति अनुभव कर सकता है। जैसा मातृ संबंध में शरीर पोषण, शील संरक्षण; पितृ संबंध में शील, आचरण, शरीर संरक्षण; गुरु-शिष्य संबंध में शिक्षा, ज्ञान, दर्शन का पुष्टि और संरक्षण; भाई-बहन, मित्र, पति-पत्नी, साथी-सहयोगी इन सभी संबंधों में सर्वतोमुखी समाधान (अभ्युदय) की अपेक्षाएँ जीवन सहज रूप में ही होना देखा गया है। इतना ही नहीं सभी संबंधों में किंवा नैसर्गिक संबंधों में भी समाधान, पुष्टि, पोषण, संरक्षण की अपेक्षा, आवश्यकता, प्रवृत्ति जीवन सहज रूप में आंशिक रूप में भ्रमित अवस्था में भी होता है। इसमें पूर्ण जागृत होने की संभावना समीचीन है। इस शताब्दी के दसवीं दशक में इसकी अपरिहार्यता अपने आप में समीचीन हुई है कि मानव इतिहास के अनुसार गम्य स्थली के रूप में सर्वतोमुखी समाधान और प्रामाणिकता ही है। कार्यरूप में सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी ही कार्य है। आचरण के रूप में मानवीयतापूर्ण आचरण ही एक मात्र सूत्र है। अनुभव के सूत्र में सहअस्तित्व में अनुभव प्रमाण ही सूत्र है। विश्लेषण के रूप में पदार्थ, प्राण, जीव और ज्ञानावस्था ही है। उपलब्धि के रूप में जो मानवापेक्षा सहज विधि से समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व अनुभव सहज प्रमाण ही है। जीवन अपेक्षा सहज रूप में तृप्ति, सुख, शांति, संतोष, आनन्द ही है। जागृतिपूर्ण विधि से जीने के क्रम में सहअस्तित्व ही विशालता है। ये सब बन्धन मुक्ति का साक्ष्य है। जागृतिपूर्ण विधि से किया गया मानव सहज