अध्यात्मवाद

by A Nagraj

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संकल्प, चिन्तन सहज विधि से किया गया चित्रण, तुलन, विश्लेषण, आस्वादन और चयन जीवन जागृति के अनन्तर सम्पन्न होने वाले कार्यकलाप है। जागृति ही भ्रम मुक्ति का प्रमाण है और लक्षण भी। प्रमाण का लक्षण प्रमाणित होने के लिये प्रेरक होना ही वर्तमान है। इन तथ्यों प्रक्रियाओं के आधार पर हर मानव अपने अर्हता को परीक्षण निरीक्षण पूर्वक मूल्यांकित कर पाता है। फलस्वरूप अनुभवमूलक विधि प्रक्रिया और फलन की संगीतमयता सहित हर मानव परिवार मानव के रूप में वैभवित होना संभव हो जाता है। इसकी आवश्यकता, अपेक्षा सब में देखने को मिलता है और संभावना सर्व समीचीन है। अस्तु, मानव अनुभवमूलक विधि से जीने की कला पूर्वक अनुभवों को पुष्ट करना चाहता है। यह अस्तित्व में अनुभवमूलक प्रणाली, पद्धति और नीतिपूर्वक सार्थक-सफल होना देखा गया है।

मानव जीवन और शरीर का संयुक्त साकार रूप है।

अस्तित्व में अनुभव होता है।

1. जीवन अस्तित्व में अनुभूत होता है।

2. जीवन और शरीर के संयुक्त साकार रूप में हर मानव परंपरा के रूप में विद्यमान है।

3. अस्तित्व में मानव अविभाज्य है।

4. सम्पूर्ण अस्तित्व सत्ता में संपृक्त प्रकृति है। यही चार अवस्था में वर्तमान है।

5. इसी धरती पर चारों अवस्थाएँ प्रमाणित है।

6. इन चार अवस्थाओं में से मानव ही अनुभवमूलक विधि से विचार शैली और सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी करने के रूप में जीने की कला को जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने योग्य इकाई है।

जागृत मानव सहज जीने की कला ही मानव पंरपरा का अक्षुण्ण गति है। विश्लेषण और प्रयोजन, प्रयोजन और विश्लेषण सम्मत जागृति सहज विचार शैली, अस्तित्व में अनुभव, सम्पूर्ण अस्तित्व को चार अवस्था के रूप में जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने के रूप में प्रमाणित होना देखा गया है।