अध्यात्मवाद
by A Nagraj
भ्रम मुक्ति के संबंध में इसके पहले ध्यान में ला चुके हैं कि न्याय, धर्म, सत्य में जागृत होना है। जागृत होने वाला वस्तु जीवन ही है। जीवन का रचना, स्वरूप, शक्ति, बल और लक्ष्य हर मानव जीवन में समान है। जीवन लक्ष्य केवल जागृति है। हर मानव में यह परीक्षण निरीक्षण पूर्वक प्रमाणित होता है। हर मानव अज्ञात को ज्ञात करने; अप्राप्त को प्राप्त करने के क्रम में ही है। इस क्रम में हर मानव जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने की प्रक्रिया में पारंगत होने के लिये प्रयत्नशील है। जागृति ही भ्रम मुक्ति का आधार है। जागृति के बिन्दु न्याय, धर्म, सत्य सहज प्रमाण परंपरा ही है। इसके कार्यरूप (जागृति सहज) को पहले स्पष्ट किया जा चुका है। जीवन में होने वाले अनुभव, अवधारणा और चिन्तन ही मानव परंपरा में जागृति प्रमाणित होने का आधार है क्योंकि जीवन ही जागृत होना, शरीर जीवन्त रहना ही संज्ञानशील और संवेदनशील कार्यों का आधार है। जीवन्तता का स्रोत जीवन है। शरीर को जीवन जीवन्त बनाए रखने के आधार पर ही जीवन अपने जागृति और आशयों को मानव परंपरा में प्रमाणित कर पाता है। इन्हीं प्रयोजनार्थ शरीर और जीवन के साकार रूप में मानव का होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस पृष्ठभूमि से यह पता लगता है हर मानव जागृति का प्यासा है।
प्रिय, हित, लाभ, भय, प्रलोभन, आस्था, संघर्ष, विषय चतुष्टयों में प्रवृत्तियाँ, संग्रह और सुविधा लिप्सा ये सब जागृति क्रम को स्पष्ट करता है। जागृति जीवन सहज सर्वोपरि अभीष्ट है। जागृति के बिना जीवन अपेक्षा पूरा होता नहीं साथ ही मानवापेक्षा भी सफल नहीं होता। अतएव अभय अपेक्षा सहज सफलता सार्वभौम लक्ष्य के रूप में पहचाना जा सकता है। यह सर्वसुलभ होने के लिए अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था ही एक मात्र दिशा है। इसे संतुलित नियंत्रित बनाए रखने के लिये मानव में मानवत्व ही एकमात्र स्रोत है। मानवत्व ही सार्वभौम व्यवस्था, अखण्ड समाज का सूत्र और व्याख्या है। इस क्रम में मानवत्व को पहचानने की विधि केवल जागृति विधि होना ही पाया जाता है। जागृति सर्वमानव के लिये वरेण्य है। इसीलिये जागृति की ओर ही एकमात्र मार्ग मानव मात्र के लिये सुस्पष्ट है।