व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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जागृतिपूर्वक ही मानव अपने आवश्यकता, सार्थकता, अर्हता का संगीत सेवी, समाधान सेवी हो पाता है। इसका तात्पर्य मानव से अपेक्षित जीवन सहज प्रतीक्षारूपी सुख, शांति, संतोष, आनंद प्रत्येक मानव को सहअस्तित्व सहज नियति क्रम में सुलभ है।

इस मुद्दे को अर्थात् प्रामाणिकता और उसकी निरंतरता को और भी विधियों से समझा जा सकता है कि अभी तक जितने भी लोग जागृत हुए हैं उनमें देखा गया प्रमाण भी इसी की पुष्टि करता है और प्रेरणा देता है कि जागृतिपूर्वक ही मानव सुखी होता है। हर मानव सुखी होना चाहता भी है। जागृत होने की संभावना सदा बना रहता है। मानव परंपरा अभी तक जागृति क्रम में होने के कारण आदर्शों को मानते हुए और जागृति की अपेक्षा को बलवती बनाता ही आया। इसी क्रम में जागृति पद तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्ति का पृष्ठभूमि होना मूल्यांकित होता है। पुनश्च जागृति क्रम और जागृति पद में पहुँचने का पृष्ठ भूमि है। इस क्रम में जागृति की इच्छा सर्वाधिक बलवती होने की आवश्यकता रहते आया। इसी क्रम में आज स्थिति ऐसी बनी है सर्वाधिक संख्या में मानव जागृत होना अनिवार्यता में बदल चुकी है। क्योंकि जागृति पूर्वक ही व्यवस्था में जीना बन पाता है। व्यवस्था में भागीदारी स्वयंस्फूर्त विधि से स्पष्ट हो जाता है, सार्थक होता है। समझदारी के साथ ही ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी सहज अभिव्यक्ति है। समझदारी का मूल रूप जीवन ज्ञान सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान का अविभाज्य अनुभूति और प्रमाण ही मानवीयता पूर्ण आचरण है। इसी के आधार पर जिम्मेदारी निर्वाह होना देखा गया। जिम्मेदारी का सम्पूर्ण स्वरूप मानवीयतापूर्ण आचरण ही है। मानवीयतापूर्ण आचरण समझदारी का ही फलन है। अखण्ड समाज विधि से