व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
का दाग न होने पर बाग-बाग होता हुआ, गदगद होता हुआ उपभोक्ताओं को देखा जा सकता है। स्वच्छ-सुंदर डब्बे के अंदर आहार औषधि वस्तुएँ बंद होने के उपरान्त उसे पावन वस्तु मानी ही जाती है। भले ही उसके अन्दर कुछ भी रहता हो। इस विधि से पैक और नामों पर विश्वास दिलाना ही सम्पूर्ण उपभोक्ता संसार में प्रचार वह भी आकर्षक प्रचार को अपनाया जाना देखा गया है। आकर्षक प्रचार के तात्पर्य में सर्वाधिक भाग किसी लड़का-लड़की का स्वीकृतियाँ, मुद्राएँ, भंगिमाएँ अंगहार सब सविपरीत यौन उन्माद के लिए सूत्रित है। यही आकर्षक प्रचार का तात्पर्य है। जैसा एक व्यक्ति प्रचार तंत्र विधि से बीड़ी पीता हुआ अपने निश्चित मुद्रा, भंगिमा, अंगहार सर्वाधिक वैभवशाली स्थिति में प्रस्तुत हो ऐसी बीड़ी पीने की प्रक्रिया को देखकर अनेकानेक लोगों को पसंद आ जाये। इसमें लड़कियों को पसंद आना भी एक मुद्दा रहती है। इसी प्रकार गांजा, दारू पीने की विधि में अनेकों प्रकार के व्यंजनों के साथ खाना खाने की प्रक्रिया के रूप में और उसके सजावट के रूप में, कपड़ों के पहनावा-पसंदी के रूप में अंततोगत्वा प्रचार माध्यम से जिस वस्तु को बेचना है। उसको भ्रमित लोकमानस स्वीकारना प्रचार का सफलता माना गया है।
अस्तु, संग्रह सुविधा भोग, अतिभोग, बहुभोग मानसिकता उपक्रम, प्रौद्योगिकी, विज्ञान विधि से समाज रचना उसका निरंतरता और इस पृथ्वी का नैसर्गिक संतुलन अर्थात् पृथ्वी के चार अवस्थाओं के परस्परता में संतुलन और सम्पूर्ण मानव में संतुलन चिन्हित रूप में प्राप्त नहीं हो पाता है। यह सम्पूर्ण मेधावियों में स्पष्ट हो चुका है। अतएव इसका विकल्प गतिशील होना ही एकमात्र उपाय है।