व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
स्थिति होने के आधार पर स्वास्थ्य-संयमता का योजना, कार्य और मूल्यांकन सुस्पष्ट हो जाता है।
उक्त विधि से परिवार मानव अर्थात् समझदार व स्वायत्त मानव, व्यवस्था मानव और समाज मानव के रूप में प्रमाणित होना ही स्वास्थ्य-संयम का लक्ष्य है। इसे विधिवत् स्थिति गति में प्रमाणित करना ही स्वास्थ्य-संयम का प्रमाण है। इसके योग्य आहार-विहार स्वाभाविक रूप में संतुलित रूप में निर्वाह कर लेना ही यथा-आवश्यकीय व्यायाम, खेल, नृत्य, गीत, संवाद, वाद्य, कलाओं का उपयोग विहार का मतलब है। इसे स्वास्थ्य-संयम अभ्यास भी कहा जा सकता है। इस अभ्यास में हर मानव भागीदार बना ही रहता है। इसमें पारंगत व्यक्ति गाँव में, मुहल्ला में होना स्वाभाविक है। हर प्रौढ़ व्यक्ति इसमें पारंगत रहता ही है। क्योंकि परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था क्रम में स्वास्थ्य-संयम कार्यक्रम निरंतर गति के रूप में प्रवाहित रहता ही है। इसमें हर व्यक्ति में जागृति का होना दिखाई पड़ता है। इसी आधार पर आहार और विहार को व्यवस्था में भागीदारी योग्य शरीर को संभालने योग्य विधि से सम्पन्न करना सहज रहता ही है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य-संयम समिति में भागीदारी को निर्वाह करता हुआ हर व्यक्ति समिति के सम्मिलित सदस्य के रूप में मूल्यांकन को समारोह में व्यक्त करेंगे जिस समारोह में पूरा ग्रामवासी, मुहल्लावासियों का होना स्वाभाविक होता ही है। ऐसे अवसर पर सम्पूर्ण ग्राम और मुहल्लावासियाँ मूल्यांकन करने के लिये दक्ष रहते ही हैं। किया गया मूल्यांकन सार्वभौम होने की स्थिति में सबका सम्मत होना स्वाभाविक है। कोई चिन्हित व्यतिरेक रहने की स्थिति में हर प्रौढ़ व्यक्ति विधिवत् मूल्यांकन