व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
सूत्र विधि से प्रमाण, समाधान, समृद्धि सम्पन्न परिवार मानव से ही प्रावधानित होना पाया जाता है। अर्पण, समर्पण तब तक भावी रहता है जब तक संतान अपने स्वायत्तता और परिवार मानव प्रतिष्ठा को प्रमाणित नहीं करता है। अर्पण, समर्पण का दूसरा स्थिति कोई दूसरा रोगी हो जाए उसके साथ अर्पण, समर्पण होने का सूत्र क्रियाशील होना पाया जाता है। तीसरा स्थिति यही है किसी देश में प्राकृतिक प्रकोप जैसे-चक्रवात, भूकंप, तूफान, ज्वालामुखी, उल्कापात, शिलापात, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, से पीड़ित लोगों के साथ अर्पण-समर्पण का सूत्र क्रियाशील होना पाया जाता है। ऐसे अर्पण, समर्पण से किसी का पोषण और संरक्षण प्रमाणित होता है यही सुरक्षा का तात्पर्य है। इस प्रकार पोषण शरीर पक्ष को, संरक्षण मानसिकता विचार पक्ष को विश्वस्त कर देता है। यही परस्परता में समाधान, समृद्धि, सम्पन्न मानव परंपरा में होने वाली सुरक्षा कार्य विधि अपने आप स्पष्ट है।
हर परिवार मानव संबंधों का पहचान, मूल्यों का निर्वाह, मूल्यांकन पूर्वक उभयतृप्ति पाने के कार्यक्रम में निष्णात रहता ही है। ऊपर कहे परिस्थितियाँ स्वाभाविक रूप में मानव संबंधों के साथ वर्तमानित होने वाले संज्ञानशीलता और संवेदनशीलता का ही महिमा है। ऐसे कार्यकलापों का मूल्यांकन उभय पक्ष करता है। शैशवकालीन स्थितियों के अलावा अन्य सभी स्थितियों में परस्पर मूल्यांकन सम्पन्न होना सहज है। जैसे प्राकृतिक प्रकोप के लिये अर्पण-समर्पण, किया गया पूरकता कार्य विधि का मूल्यांकन उभय पक्ष करना स्वाभाविक है और इसमें उभय तृप्ति का होना भी स्वाभाविक है। इसी प्रकार रोगी और संतानों के साथ किया गया अर्पण-समर्पण से उन-उन का सुरक्षा स्वाभाविक रूप से