व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
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दिशा, परिप्रेक्ष्यों में मानव प्रस्तुत होता है वह कायिक, वाचिक, मानसिक रूप में होना पाया जाता है। ऐसे आचरणों को जागृति पूर्वक विधि से संपन्न किये जाने का मूल्यांकन स्वाभाविक रूप में होता है। इस क्रम में हर मानव का स्वयं का मूल्यांकन सहज हो जाता है। स्वयं का मूल्यांकन स्वयं में विश्वास पर आधारित रहना देखा गया है। स्वयं पर विश्वास अथवा स्वयं में, से, के लिये विश्वास का आधार जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण पूर्वक संभव हो जाता है।
सर्वशुभ समझदारी से ही है।