व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
संबंधों को मानव के सम्पूर्ण कार्य-व्यवहार के आधार पर संबोधन रूप में पहचाना जाता है। जिसकी सूची पहले प्रस्तुत किया गया है। हर संबंधों का प्रयोजन भी उसी के साथ स्पष्ट है।
मानव संबंधों का प्रकार
- माता - पुत्र - पुत्री
- पिता - पुत्र - पुत्री
- भाई - बहिन
- मित्र - मित्र
- गुरू - शिष्य
- पति - पत्नी
- स्वामी (साथी) - सेवक (सहयोगी)
- व्यवस्था संबंध (व्यवस्था - कार्यप्रणाली)
हर संबंधों में पूरकता प्रधान ज्ञान प्रणाली व्यवस्था के रूप में कार्यप्रणाली गति के रूप में सहअस्तित्व सहज रूप में ही स्पष्ट होता है। हर संबंध एक-दूसरे के पूरक होने के अर्थ में नित्य प्रतिपादन है। अस्तित्व सहज व्यवस्था क्रम में पूरकता विधि प्रभावशील है। इसके मूल में अस्तित्व सहज सहअस्तित्व ही है।
हर संबोधन में अपेक्षाएँ समाहित रहना पाया जाता है। हर संबंधों के संबोधन प्रक्रिया में जागृति की अपेक्षा रहता ही है। उसके साथ तीन संबंध ही देखने को मिला। ये तीन संबंध मानव संबंध, नैसर्गिक संबंध, और व्यवस्था संबंध हैं। मानव संबंध में अपेक्षाएं शरीर पोषण, संरक्षण, समाजगति की अपेक्षाएँ प्रकारान्तर से समायी रहती है। पोषणापेक्षा - पोषण प्रवृत्तियाँ तन, मन (जीवन) और धन के संबंधों में अथवा तन,