व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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जीवन सहज रूप में स्वीकृत है। इसलिये इसका आचरण, समझ और विचार समीचीन है।

मानव परंपरा में ही हर परिवार मानव अपने संतानों को परम ज्ञान, परम दर्शन, परम आचरण सम्पन्न बनाने में स्वाभाविक रूप में सार्थक होगा। क्योंकि जागृत मानव हर आयाम, कोण, दिशा, परिप्रेक्षों में जागृति सहज कार्यकलापों, आचरणों, विचारों और प्रमाणों को वहन किया करता है। दूसरे भाषा में अभिव्यक्त संप्रेषित और प्रकाशित करता है। ऐसे मौलिक क्षमता का अर्थात् जागृति पूर्ण क्षमता के लिये हर अभिभावक जिम्मेदार, भागीदार रहना पाया ही जाता है।

जागृत पंरपरा में हर अभिभावक जागृत मानव पद में प्रमाणित रहने के आधार पर ही अपने संतानों में न्याय प्रदायी क्षमता, समाधानपूर्ण कार्य-व्यवहार (सही कार्य-व्यवहार) करने की योग्यता, और सत्यबोध सम्पन्न सत्यवक्ता होने की अर्हता को स्थापित करना सहज है।

जागृत मानव परंपरा में पीढ़ी से पीढ़ी किताब के बोझ से छुटकारा अथवा कम होने की प्रणाली बनेगी क्योंकि जागृतिपूर्ण परंपरा में समझ के करो विधि पूर्णतया प्रभावशील रहता है। इसी के साथ समझ में “जीने दो जीयो” वाला सूत्र भी सहज ही चरितार्थ होता है। समझने का मूल स्रोत, पहला स्रोत जिस परिवार में जो शिशु अर्पित रहता है वही परिवार सर्वाधिक जिम्मेदार होता है। इस तथ्य पर हम सुस्पष्ट हो चुके हैं कि हर स्वायत्त मानव परिवार मानव के रूप में प्रमाणित होता है। यही जागृत मानव प्रतिष्ठा है। यह मौलिक अधिकार में गण्य है। ऐसे जागृत परिवार में अर्पित हर संतान के लिये जागृति सहज शिक्षा-संस्कार के लिये हर अभिभावक पर्याप्त होना पाया जाता है। शिशुकाल में