व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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देने के क्रम में नियोजित करने की स्थिति में रूप के साथ सच्चरित्रता और सुशीलता का भी रक्षा होते हुए सुगम रूप में ही जीने देने के उपरान्त जीने में संगीत अपने आप देखने को मिलता है। जिससे सुखी होना स्वाभाविक है। प्रत्येक नर-नारी बल के सदुपयोग से सुखी होने की विधि जीने देकर जीने के क्रम में ही देखा गया है।

धन के साथ उदारता - उदारता का उत्तरोत्तर जागृति की ओर तन, मन, धन रूपी अर्थ को नियोजित करना ही है। हर पीढ़ी, अग्रिम पीढ़ी को अपने से श्रेष्ठ होने का कामना करता ही है। हर स्थिति, हर गति, हर देशकाल में मानव अपने श्रेष्ठता को जागृति क्रम, जागृति, जागृतिपूर्णता और उसकी निरंतरता विधि से ही प्रमाणित करता है। जागृति और जागृतिपूर्णता स्वायत्त मानवीयता सहज पारंगत प्रमाण ही होना पाया जाता है। जागृति क्रम स्वायत्त मानव पद प्रतिष्ठा पर्यन्त निश्चित है। इस क्रम में परंपरा जागृत रहना एक अनिवार्य स्थिति रहती है। तभी मानवीयता पूर्ण परंपरा सहज सार्थकता प्रमाणित होती है।

अतएव जीने देकर जीना जागृति के उपरान्त हर व्यक्ति के लिये सहज प्रक्रिया है। तन, मन, धन रूपी अर्थ शरीर पोषण, संरक्षण, समाज गति व्यवस्था सहज स्वीकृति और समग्र व्यवस्था में भागीदारी को निर्वाह करने के क्रियाकलापों में अर्थ सम्पूर्णतया सार्थक होना, सदुपयोग होना होता है। इसी क्रियाकलापों में नियोजित अर्थ प्रक्रिया का उदारता नाम है।

उदारता अपने में जागृति सहजता की ओर इंगित क्रिया में उन्मुख रहता है। उदात्तीकरण स्वाभाविक रूप में जागृति के जिस बिन्दु में जो रहता है उससे आगे के बिन्दुओं की ओर गतित करना/हो जाना ही उदात्तीकरण का तात्पर्य है। यह