व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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पूरकता विधि से ही होना पाया जाता है। मानव सहज सदुपयोग विधि स्वयं में उदारता है। यह सुख का स्रोत है। उदारतापूर्वक मानव सुखी होना देखा गया है।

पद के साथ न्याय - न्यायापेक्षा सर्वमानव में है ही। न्याय प्रदायी क्षमता सहित धारक-वाहकता ही न्याय प्रदायिता को प्रमाणित करता है। न्याय प्रदायिता मूलतः एक समझदारी का ही स्वरूप है यही जागृति है। समझदारी में संबंध, मूल्य, मूल्यांकन और उभय तृप्ति का प्रमाण समाया रहता है। समझदारी सहज विधि से हर व्यक्ति एक-दूसरे के साथ न्याय प्रदायिता को प्रमाणों के साथ संतुष्टि बिन्दु में पहुँचना सहज हो जाता है। इसीलिये न्याय प्रदायिता का नाम है। ऐसे न्याय प्रदायिता के रोशनी में हर व्यक्ति में प्रमाण रूपी तृप्ति बिन्दु पाने की उत्कंठा रहती है। इसलिये हर व्यक्ति न्याय प्रदायिता के साथ पूरक होना देखा गया। परस्पर पूरकता के साथ उदात्तीकरण समीचीन होना, फलस्वरूप प्रमाण रूपी तृप्ति बिन्दु पर पहुँचना कम से कम दो व्यक्ति में तृप्ति सहज साक्ष्य सत्यापित होता है। यही उभयतृप्ति का साक्ष्य है। इस प्रकार सुख और सुख की निरंतरता मानव में, से, के लिये समीचीन है।

बुद्धि के साथ विवेक - अनुभव बोधपूर्ण स्थिति में ही बुद्धि का सदुपयोग होना पाया जाता है। जीवन का दृष्टा और अस्तित्व में, से, के लिये दृष्टा जागृतिपूर्ण जीवन ही होना पाया जाता है। जागृति पूर्णता अपने में दूसरे विधि से प्रत्येक मानव में जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान विधि से प्रमाणित, ख्यात और प्रख्यात हो जाता है। जागृति सहज विधि से जितने भी जीवन शक्तियों को, बलों को शरीर के द्वारा प्रयोग करते हैं उन सभी विधा