व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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में प्रमाणित होने के लिए चार वर्ष न्यूनतम रूप में होना आवश्यक है। इसमें हर अभिभावक, आचार्य, भाई-बहन, मित्र सबको प्रमाण देखने को मिलेंगे। इस अवधि के उपरान्त प्रधानत: अभिभावक, प्रौढ़, भाई-बहन, मित्रों की सम्मति विवाह में प्रयोजित होने वाले नर-नारी की प्रवृत्तियों का संगीत अथवा एक मानसिकता के आधार पर आचार्यों की सम्मति सहित विवाह संस्कार सम्पन्न होगा। यही मानव परंपरा में मानवीयतापूर्ण पद्धत्ति से मानव संचेतना सहित सम्पन्न होने वाला विवाह संस्कार उत्सव है। इसके लिये आयु विचार स्पष्ट हो गया। बाईस वर्ष के उपरान्त ही विवाह सम्पन्न होना अध्ययन विधि से स्पष्ट हो चुका है। इसी अवधि के साथ दायित्व, कर्त्तव्य और परिवार मानव का सम्पूर्ण प्रमाण प्रस्तुत करने की आवश्यकता और अवधियाँ स्पष्ट हो चुकी है। दूसरी विधि से स्वास्थ्य संबंध में सोचने पर भी शरीर अंग-अवयव पुष्टि भी इसी आयु तक सहज ही सम्पन्न होना देखा गया है।

तीसरी प्रवृत्ति यह भी देखा गया है कि मानव अपने सार्थकता के साथ आवश्यकताओं की व्यवस्था, व्यवस्था में भागीदारी सजाने अर्थात् अवधारणाओं में सजाने, पारंगत होने, प्रमाणित करने की अनिवार्यता प्रधान विधि से विवाह मानसिकता ऐसे अर्हता के उपरान्त ही उद्मित होना स्वाभाविक है। इस क्रम में प्रचार, प्रदर्शन, प्रकाशन कार्य प्रणालियाँ स्वाभाविक रूप में ही परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था एवं व्यवस्था में भागीदारी के लिए अनुकूल कार्य प्रणाली, प्रवृत्ति, पद्धति, नीतिपूर्ण रहना होता ही है। अक्षय बल-शक्ति सम्पन्नता में समान रहता है। अस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान और मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान में पारंगत-प्रमाणित होने के क्रम में सर्वाधिक व्यक्तियों में व्यवस्था और व्यवस्था में