व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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दो अंश वाले जाति के सभी परमाणु एक ही आचरण करते हैं। इसलिये इस प्रजाति के सम्पूर्ण परमाणुओं का आचरण एक ही है। इसी प्रकार 3, 4 या 5 आदि विभिन्न संख्यात्मक परमाणुओं का आचरण, अपने-अपने प्रजातियों में सम्पूर्णता के रूप में एक ही है। इसमें कोई व्यतिरेक होता नहीं है। परमाणुओं की अनेक प्रजातियाँ है। इसी क्रम में अणुओं में निश्चित प्रजाति के अणुओं का आचरण और निश्चित रचना का आचरण अक्षुण्ण होना पाया जाता है। जैसे विभिन्न तत्वों के परमाणुओं से रचित अणु, अणु रचित पिण्ड रचनाओं का आचरण सर्वदेश-सर्वकाल में एक ही होता है।

प्राणावस्था में सम्पूर्ण रचनाएँ प्राणकोशाओं से रचित रहना विदित है। ऐसे प्राण कोषाएं मूलतः समान होते हुए रचना में विविधता होना देखा गया। इसका नियंत्रण बीजानुषंगीय विधि से सम्पन्न होता हुआ दिखाई पड़ता है। बीजों के आधार पर वृक्ष, वृक्षों के आधार पर बीज प्रमाणित होना सर्वविदित है। इनके सम्पूर्ण आचरण अपने-अपने प्रजाति के सम्पूर्णता में एक ही होता है। जैसे-बेल, दूब, पीपल, कमल, गुलाब आदि सभी पेड़-पौधे वृक्ष, पुष्प, लता और उन-उनमें विविध प्रजातियाँ बीज, वृक्ष, न्याय क्रम में नियंत्रित है। उन-उन प्रत्येक प्रजातियों के सम्पूर्ण एक-एक अपने आचरण के रूप में एक ही होते हैं।

जीव संसार अनेक प्रजातियों के रूप में दृष्टव्य है। प्रत्येक प्रजाति सहज जीव कितने भी संख्या में हो उन-उन का आचरण एक ही होना पाया जाता है। जैसे कुत्ता, बिल्ली, गाय, घोड़ा, गधा, हाथी आदि जीव संसार दृष्टव्य है। इन इनके आचरणों में स्थिरता, संतुलन स्पष्ट दिखाई पड़ता है। ये जीव