भौतिकवाद

by A Nagraj

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अस्तित्व में प्रत्येक एक, सत्ता में संपृक्त वैभव होने के फलस्वरुप बल संपन्नता, चुम्बकीय बल संपन्नता के रूप में प्रमाणित है। इसी सत्यता वश, प्रत्येक अंश में भी बल संपन्नता अस्तित्व सहज है। इसका प्रमाण है- एक से अधिक अंश ही, परस्पर निश्चित दूरी में होते हुए, व्यवस्था को व्यक्त करते हैं। प्रत्येक परमाणु एक से अधिक अंशों से गठित रहता ही हैं। प्रत्येक परमाणु में गतिपथ सहित परमाणु अंश कार्यरत रहते हैं। कम से कम दो अंशों से संपन्न अथवा गठित परमाणु गति पथ सहित होता है। ऐसे दो अंशों के परमाणु में भी मध्य में एक अंश होता है और उसके सभी ओर चक्कर काटता हुआ एक दूसरा अंश देखने को मिलता है। ऐसे परमाणु अपने स्वभाव गति में अणुओं के रूप में और पिण्डों के रूप में होते हैं। ऐसे सीमित संख्यात्मक अंशों से गठित प्रत्येक परमाणु अपनें में एक व्यवस्था है - यह प्रमाण मिलता ही हैं।

किसी एक संख्यात्मक अंशों से संपन्न संपूर्ण परमाणु एक ही प्रजाति के होते हैं। इनमें किसी भी प्रकार का व्यतिरेक नहीं होता है। उन प्रजाति के परमाणु अपने में व्यवस्था के आधार पर सक्षम होते हैं। यही स्वभाव गति प्रतिष्ठा का सहज प्रमाण हैं। केवल अंशों के रूप में, अर्थात् किसी परमाणु में समाया न हो ऐसे अंश इस धरती और धरती के वातावरण में न्यूनतम अथवा नहीं के बराबर होते हैं।

न्यूनतम संख्या में यदि कोई अंश हो तो वह आवेशित गति में ही होता है। ऐसे अंश का स्वभाव गति प्रतिष्ठा में प्रतिष्ठित किसी परमाणु के साथ संयोग होना अवश्यंभावी रहता है। तभी वह अंश संयोग में आए किसी परमाणु में समा जाता है। इसका प्रमाण यही है कि एक परमाणु अपने स्वभाव गति में हो, दूसरी प्रजाति का अर्थात् स्वभाव गति से भिन्न, संख्यात्मक अंशों से गठित परमाणु आवेशित हो; ऐसी स्थिति में आवेशित परमाणुओं में से कुछ संख्यात्मक अंश बहिर्गत होना चाहते है और आवेशित अवस्था में किसी अवधि में कुछ अंश उस परमाणु से बहिर्गत होता भी है। उस स्थिति में यह देखने को मिलता है कि जो परमाणु स्वभाव गति प्रतिष्ठा में स्थित रहा वह परमाणु बहिर्गत अंशों को अपने गठन में आत्मसात करता है अर्थात् अपनाता है। फलस्वरुप वह स्वयं समृद्घ होता है। अस्तित्व सहज रूप में, उक्त विधि से, भौतिक वस्तुओं का क्रियाकलाप बुनियादी तौर पर अध्ययनगम्य होता है।