भौतिकवाद
by A Nagraj
बात भी समझ में आई। अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन सहज प्रकाश में सभी निग्रह बिंदुओं का समाधान समझ में आया तब इसको प्रस्तुत करना उचित समझ लिया।
जीवन ज्ञान का लोक व्यापीकरण होता है, इसको सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थाओं में भी प्रयोग किया गया। यह संप्रेषित होता है इसका प्रमाण मिला। फलस्वरुप रहस्य का उन्मूलन करने में विश्वास किया। इस प्रकार हर व्यक्ति अपने में प्रयोग कर देख सकता है जीवन ज्ञान में पारंगत होने के उपरान्त:-
1. स्वयं के प्रति विश्वास होता है।
2. श्रेष्ठता के प्रति सम्मान होता है।
3. जीवन में ही रहस्य से मुक्ति मिलता है।
4. मानव जागृत होकर देवमानव, दिव्यमानव होता है, यह सत्य समझ में आता है। फलस्वरुप देवी-देवता संबंधी रहस्य से मुक्ति मिलता है।
5. अस्तित्व दर्शन सहज रूप में ही होता है। फलस्वरुप ईश्वर संबंधी रहस्य से मुक्ति मिलता है।
6. अस्तित्व ही सहअस्तित्व के रूप में समझ में आता है।
इस विधि से अज्ञात को ज्ञात करने का उपाय सहज ही समझ में आता है। इस प्रकार धर्म संबंधी रहस्य सहअस्तित्व विधि से, प्रमाण संपन्नता सहित सार्वभौम व्यवस्था और अखण्ड समाज रचना और उसकी निरतंरता में, से, के लिए संपूर्ण बोध सहित कार्य प्रयास आरंभ हुआ।
ऊपर कहे अनुसार मानव किसी भी देश, काल में जीवन विद्या में पारंगत होने के उपरान्त व्यक्तित्व और प्रतिभा में संतुलन सहित, व्यवहार में सामाजिक, व्यवसाय में स्वावलंबी होना संभव होता है। इसे एक से अधिक व्यक्तियों में देख लिया गया। इन आधारों पर परिवार परिवार समूह, ग्राम मोहल्ला परिवार, ग्राम समूह परिवार, क्षेत्र परिवार, मंडल परिवार, मंडल समूह परिवार, मुख्य राज्य परिवार, प्रधान राज्य परिवार, विश्व राज्य परिवार भी व्यवहार में समाजिक, व्यवसाय में स्वावलंबी होगें। यह परंपरा में संतुलन होने का प्रमाण हैं। प्रत्येक मानव परिवार मानव के रूप में ही मूल्यांकित हो पाता है। समृद्घि और समाधान ही स्वावलंबन और सामाजिकता का प्रमाण हैं। प्रमाण