भौतिकवाद

by A Nagraj

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मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान। जीवन-ज्ञान और अस्तित्व दर्शन के फलस्वरुप, जागृति, सार्वभौम व्यवस्था विधि से आचरण, कार्य, व्यवहार के रूप में प्रमाणित हो पाता है। इसी के साथ, जागृतिपूर्वक जो कुछ भी उत्पादन कार्य करते है और करने के लिए प्रयत्न करते है, वह सब सहअस्तित्व सहज मानसिकता सहित ही संपन्न होना देखने को मिलता है। फलस्वरुप मानव सहअस्तित्व सहज उत्पादन कार्यकलापों को योजनापूर्वक अपनाता रहेगा। इसलिए नैसर्गिक संबंधों का निर्वाह, मूल्यों का निर्वाह और मूल्यांकन सहज हो पाएगा। मानव सहअस्तित्व अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था के रूप में ही प्रमाणित हो पाता है। इसलिए मानव संबंधों का पहचान, मूल्यों का निर्वाह व मूल्यांकन सहज ही संपन्न होगा। इन दोनों स्थितियों के फलस्वरुप प्राकृतिक ऐश्वर्य पर जीवन और शरीर की संयुक्त विधि से नियोजित श्रम वस्तु में स्थापित उपयोगिता व कला मूल्य के आधार पर मूल्यांकन होना सहज हो जाता है, यही मूलत: मुद्रा व प्रतीक मुद्रा का विकल्प है।

मुद्रा और श्रम मूल्य :- मुद्रा और प्रतीक मुद्राएँ अभी तक समुदायों में, विविध प्रकार से प्रचलित रहीं। धातुओं के ऊपर लिखी हुई संख्याओं को मुद्रा कहते है। उन्हीं संख्याओं को कागज पर छापने से वह प्रतीक मुद्रा कहलाता है। दोनों प्राप्ति नहीं हैं। जो कुछ भी प्राप्ति है; वह आहार, आवास, अलंकार संबंधी और दूरदर्शन, दूरगमन, दूरश्रवण संबंधी वस्तुओं में हैं। इन सब की उपयोगिता स्पष्ट है। इनका सदुपयोग करना भी है। मुद्रा और प्रतीक मुद्रा का उपयोग नहीं हो सकता, सदुपयोग होने की बात तो दूर रही। इसलिए इस भ्रम का विकल्प आवश्यक रहा। इसका विकल्प श्रम का नियोजन, श्रम मूल्य का मूल्यांकन और श्रम विनिमय ही हैं। वस्तुओं का विनिमय मूल्य, श्रम नियोजन के आधार पर होना पाया जाता है। इसलिए वस्तुओं का मूल्यांकन होना सहज संभव है। वस्तुओं का मूल्यांकन ही श्रम का मूल्यांकन है। वस्तु का विनिमय ही, श्रम का विनिमय है। इस प्रकार श्रम का मूल्यांकन और श्रम विनिमय प्रणाली को अपनाना सुलभ है। जिससे द्रोह-विद्रोह, शोषण अपने-आप शांत हो जाते हैं। इसकी गति अवश्य ही मानव कुल चाहता है। इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर आते है कि:-

1. श्रम मूल्य को पहचाना जा सकता है।

2. श्रम मूल्य का मूल्यांकन उत्पादित वस्तु के उपयोगिता और कला के आधार पर किया जा सकता है।