भौतिकवाद
by A Nagraj
जागृत मानव अपने तन, मन, धन रुपी अर्थ को आगे पीढ़ी, पीछे पीढ़ी के साथ वर्तमान दायित्व एवं कर्त्तव्य पूर्वक अर्पित, समर्पित कर सदुपयोग पूर्वक सुख को पा लेता है। फलस्वरुप उस-उस की सुरक्षा होना प्रमाणित होता है।
उपयोग :- स्वायत्त मानव सहज परिवार में तन, मन, धन रुपी अर्थ का उपयोग मूल्य और मूल्यांकन पूर्वक उभय तृप्ति।
सदुपयोग :- परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी करते हुए तन, मन, धन रुपी अर्थ का नियोजन, सदुपयोग है।
प्रयोजनशीलता :- जागृतिपूर्ण विधि से प्रमाणित करने में नियोजित किया गया तन, मन, धन रुपी अर्थ।
सदुपयोग पूर्वक सुख उनको मिलता है जो अपने तन, मन, धन को विकास और जागृति, कर्तव्य और दायित्वों के लिए अर्पित करते है जिसके लिए अर्पित हुआ, उसकी सुरक्षा, जागृति और विकास के अर्थ में संपन्न हुई। यही पूरकता विधि है।
मानव परंपरा में पूरक विधि से ही, मानव सहज ऐश्वर्य तन, मन, धन रुपी अर्थ का सदुपयोग, सुरक्षा सहज सौन्दर्य, सुख और समाधान को देखना बनता है एवं यही मानव परंपरा में पाई जाने वाली मौलिकता है। इस क्रम में मानव सहज सुरक्षा, सदुपयोग- जो सुरक्षित करता है, जो सुरक्षित होता है, इन दोनों में ओतप्रोत उत्सव अर्थात् प्रसन्नता की समानता, समाधान की समानता और सौंदर्य बोध सहज ही होता है। यही मानव तथा मानव परंपरा, नियंत्रित होने का मूल बिंदु है। इसका सकारात्मक सौंदर्य प्रत्येक जागृत मानव या जागृत परिवार में देखा जा सकता है। जो मानवतीयता पूर्ण आचरण मे दृढ़ हो चुके हैं।
तन, मन, धन रुपी अर्थ के सदुपयोग, सुरक्षा क्रम में ही मानव व्यवस्था और व्यवस्था में भागीदारी है और अखण्ड समाज रचना, रचना कार्य और उसमें भागीदारी का निर्वाह करता है, यही जागृत पंरपरा का दायित्व हैं।
मानवीयता सहज विधि से तन, मन, धन रुपी अर्थ का सदुपयोग - सुरक्षा क्रम में जनसंख्या नियंत्रण का मार्ग प्रशस्त होता है और पर्यावरण सुरक्षा भी सुलभ होता है। मानव जब तक असुरक्षा से पीड़ित रहेगा, तब तक प्रदूषण को पैदा करता ही रहेगा।