भौतिकवाद
by A Nagraj
पाप-पुण्य के आधार पर दण्ड और न्याय निर्णय करने का अधिकार राजा अथवा राजा से अधिकृत व्यक्तियों को रहा। इस क्रम में संविधानों में यह भी देखने को मिला बहिष्कार को भी एक दण्ड के रूप में प्रयोग किया गया। रहस्यमय पुण्य घटनाक्रम में दिखने वाले अपराधों के आधार पर धार्मिक राजनीति की स्थापनाएँ हुई। ऐसी स्थापनाएँ इस धरती पर कई समुदायों के बीच हुई। आज भी विभिन्न समुदायों के बीच भिन्नता सहित संविधानों का स्वरुप देखने को मिलता है।
धार्मिक राजनीति के काल में ही दास युग की स्थापना हुई। इसमें ईश्वर के प्रति दासता, गुरु के प्रति दासता और राजा के प्रति दासता को स्वीकारने की परंपरा बनी। इसी दासता को दूसरी भाषा में समर्पण कहा गया। उसके फलस्वरुप अधिकांश मानव जाति सशंकित, आतंकित रही।
क्रमागत विधि से मानव मानस के परिवर्तनों के आधार पर मानव से घटित होने वाली घटनाएँ बदलती भी रही। जैसे सत्ता परिवर्तन, वस्तु संचय का परिवर्तन, अपहरण, लूट, उपकार, द्रोह-विद्रोह, युद्घ, व्यापार, शिक्षा, व्यवस्था तंत्र, संस्कार तंत्र, विपन्नता से संपन्नता की ओर बढ़ने के क्रम में हर परिवार व हर व्यक्ति प्रयत्न करता ही आया।
अनुमानत: दो सौ वर्ष पूर्व विज्ञान युग या भौतिकवादी युग आरंभ हुआ। विज्ञान का विरोध धर्मतंत्र ने जमकर किया। अंततोगत्वा वैज्ञानिकों ने राजगद्दी को अपने पक्ष में कर लिया। इस आधार पर कि राजा को सदा ही युद्घ से जूझने की आवश्यकता पड़ी। धर्म के सहारे युद्घ भय से राहत मिलना संभव नहीं रहा। इसके विपरीत यह मान लिया गया कि धर्म का संरक्षण युद्घ में कुशल होने पर होगा। कुछ धर्म वाले अथवा कुछ धार्मिक राज्य वाले धर्म संरक्षण के लिए युद्घ को प्रधान कार्यक्रम मान लिये थे। इन्हीं आधारों पर तत्कालीन राजगद्दी वाले विज्ञान के द्वारा समर शक्ति पैनी होगी इस संभावना पर विश्वास किए। फलस्वरुप विज्ञान को राज्याश्रय मिलना आरंभ हुआ। आज भी सर्वाधिक समर शक्ति संपन्न देशों को ही विकसित देश मानते हैं। यही आज के मूल्यांकन का आधार है। इस जगह को आज विश्व संघ या राष्ट्रसंघ कह रहे हैं। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि आज तक मूल्यांकन किसी देश की समर शक्ति संपन्नता और वस्तु संग्रह के आधार पर ही किया जाता है।