भौतिकवाद
by A Nagraj
“जो मूल वस्तु जिस वस्तु से बना रहता है वह उसके मूल वस्तु के समान है” जैसे-
(1) मिट्टी से कितनी भी, कोई भी वस्तु बनावें, वह सब मिट्टी के समान ही हैं। उनका न तो मात्रात्मक परिवर्तन होता है, न ही गुणात्मक परिवर्तन होता है। परिवर्तन ही विकास या ह्रास को माना जाता है। पदार्थावस्था में जितने प्रकार की वस्तुएँ है, उनमें से अधिक वस्तुओं के संयोग से भी, वस्तुओं को बनाकर देखा जाए, तो भी संयोग में आई सभी वस्तुएं, मूल वस्तुओं के समान ही होते हैं।
(2) प्राण कोषाओं से बनी हुई अथवा रची हुई रचनाएँ अपने मूल रूप में वह प्राणकोषा के समान ही होता है। प्राणकोषाएँ मूलत: रासायनिक वैभव की अभिव्यक्ति है। रासायनिक मूल द्रव्यों का स्वरुप भौतिक पदार्थ ही हैं। रासायनिक परिवर्तन में एक से अधिक प्रजाति की तात्विक अणुएँ अपने निश्चित आचरणों को त्याग कर तीसरे प्रकार के आचरण के लिए तैयार हो जाते हैं। यह तभी तक उसी क्रियाकलाप में अपने को व्यस्त रख पाते है, जब तक भौतिकता का वर्तमान सानुकूल रहता है। जब कभी भी इसकी सानुकूलता समाप्त हो जावें, अथवा प्रतिकूल रूप में बदल जावें तब प्रतिकूल भौतिकी वातावरण में रसायन क्रियाकलाप और रासायनिक वैभव देखने को नहीं मिलता है।
जैसे अभी चन्द्रमा पर कोई रासायनिक वैभव दिखता नहीं है, इसी प्रकार सूर्य में भी ऐसी क्रियाकलाप संभव नहीं है। इसलिए भौतिकता सानुकूल होना अनिवार्य शर्त है। ऐसी अनुकूल स्थिति को भौतिक क्रियाकलाप बना लेते हैं। यह साक्ष्य इस धरती में स्पष्ट है। इसी प्रकार प्राण कोषा, रासायनिक कार्यक्रम, रचनाओं के रूप में और रासायनिक वैभव अर्थात् भौतिक सानुकूलता अर्थात् रासायनिक द्रव्यों के लिए भौतिक वस्तुओं की उपलब्धि, ये सभी चीजे तभी समझने को मिली। इससे हमें यह स्पष्ट होता है और अध्ययनगम्य होता है तथा विश्वास होता है कि रासायनिक द्रव्य जब कभी ह्रास गति को प्राप्त करते है, भौतिक वस्तुओं के रूप में रह जाते हैं।
इसीलिए रचना-विरचना का इतिहास, इस बात को स्पष्ट कर देता है कि पदार्थावस्था से प्राणावस्था उदात्तीकरण है और प्राणावस्था से पदार्थावस्था पूर्वोदात्तीकरण है। यही प्राणपद चक्र की लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई है। प्राणावस्था की कोषाएँ अपने स्वरुप में, भौतिक वस्तु से भिन्न होती हैं। रासायनिक द्रव्य के समान ही होते हैं। रासायनिक द्रव्य