भौतिकवाद
by A Nagraj
मनोकामनाओं की सीमा और विवशता में बन पाई हैं। वे घटनाएँ उनके कहे अनुसार घटित होने के आधार पर उस व्यक्ति को सिद्घ पुरुष मानकर लोगों ने उन पर आस्था की है, विश्वास किया है। ऐसे कई स्थल बन चुके है जहाँ बहुत सारा धन एकत्रित हो चुका है। ऐसा धन संग्रह सार्वजनिक उपयोग में आता हुआ दिखने पर, उसको ठीक मानते हैं। इसके विपरीत होने पर गलत मान लेते है- यह भी देखने को मिला है। इस प्रकार सभी विधियों से देखने के उपरान्त:-
1. प्रलोभनों के सफल होने की चिन्हित स्थली में ज्यादा भीड़ इकट्ठा होना।
2. किसी संस्था के आश्वासनों के आधार पर भी भीड़ इकट्ठा होना। मान्य आश्वासनों की पूर्ति के लिए जहाँ-जहाँ आश्वासन मिलता है वहाँ-वहाँ ज्यादा से ज्यादा भीड़ इकट्ठा हो जाती है।
विकल्प:-
मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद) इसके द्वारा सत्य सर्व सुलभ, अध्ययनगम्य, व्यवहार प्रमाण के रूप में, परंपरा सहज रूप में समीचीन संयोग हो पाया है। मुख्य मुद्दा सत्य समझ में आना; समाधान पूर्ण विचार शैली मानव में प्रमाणित होना और मानवीयता पूर्ण आचरण, प्रत्येक मानव में आचरित होना है। जिसके फलस्वरुप अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था स्वीकार होना, यही मानव परंपरा सत्यपूर्ण विधि से, गतिशील होने का स्वरुप हैं। इसमें इसकी सहज प्रक्रिया अध्ययनगम्य विधि से जीवन ज्ञान और जीवन ज्ञान पर आधारित प्रमाण अध्ययनगम्य है। फलत: परंपरा गम्य हैं। अध्ययन रुपी अभ्यास से अस्तित्व दर्शन, जीवन विद्या सहज रोशनी में होता है। परम सत्य सहअस्तित्व ही है। अभिव्यक्ति के रूप में सत्य ही स्वीकार होता है। सहअस्तित्व अस्तित्व सहज रूप में है, ऐसा सहअस्तित्व सहज स्वीकार और जीने की कला अस्तित्व सहज सत्य के रूप में प्रमाणित होता है। यही जीवन सहज जागृति का प्रमाण, व्यवहार प्रमाण है। अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी का प्रमाण, अस्तित्व दर्शन में परिपक्वता की अभिव्यक्ति में प्रमाण हैं। फलस्वरुप जीवन में प्रामाणिकता की