भौतिकवाद

by A Nagraj

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  • शक्ति केन्द्रित शासन के अनुसार बंदूक, तोप, प्रक्षेपास्त्र, विस्फोट आदि वध-विध्वंस कार्यों का अधिकार संविधान विधि के अनुकूल प्रणालियों से राजा या नेता को प्रदत्त रहता है। इसे प्रत्येक शासन तंत्र में देखा जा सकता है। ऐसे शासन सम्मत अधिकार संपन्न व्यक्तियों के अतिरिक्त समर शक्तियों का उपयोग करना दूसरों के लिए अवैध माना गया हैं। इसीलिए ऐसे व्यक्ति ऐसे विध्वंसक कार्यों को करते हुए शासन तंत्र के कब्जे में न आ सकने की स्थिति में उग्रवादी, आतंकवादी आदि नामों से जाने जाते है। यह संघर्षवाद का एक स्पष्ट मूल्यांकन है।

शासन विधि, प्रणाली, प्रक्रियाओं से अधिकतर जनता उत्पीड़ित होते रही है, अभी भी उत्पीड़ित हो रही है। इससे छुटकारा पाने के लिए गणतंत्र प्रणाली को सोचा गया। इसके बावजूद उत्पीड़न अधिक प्रसन्नता कम है। इस प्रसन्नता और अप्रसन्नता का आधार वस्तु संग्रह होने या न होने की घटना पर आधारित है।

इसी तरह एक और समुदाय है जो हमें राजयुग से ही ईश्वर के प्रति आस्था, निष्ठा स्थापित करके क्लेश-मुक्ति के लिए उपदेश देते रहे। परोपकार, असंग्रह का उपदेश देते रहे हैं। ऐसे लोगों को हम गुरु, तपस्वी, संत, यति आदि मान कर सम्मान करते रहे है । आम जनता आस्थापूर्वक इनके लिए वस्तु अर्पित करती रही है। ऐसे लोगों को एक वर्ग के रूप में पहचाना जा सकता है। ऐसे महापुरुषों का अध्ययन करने पर पता लगता है कि इनमें से कुछ लोगों को वस्तु संग्रह करना आसान हो गया है अथवा ये लोग वस्तुओं का संग्रह कर चुके है। पहले ये मेधावी व्यक्ति अपने तप, योग, अभ्यास, स्वाध्याय से, प्रभावशाली प्रवचनों और उपदेशों से, परोपकारी कार्यों से मनोकामना पूर्ण होने का आश्वासन देने में अग्रणी रहे। ये सब गौरव, सम्मान आदर के पात्र रहे हैं।

पहले चार समुदायों के संदर्भ में विश्लेषण पूर्वक उनकी स्थिति स्पष्ट की जा चुकी है। इनके अतिरिक्त लोगों को हम आम जनता कहते है। जिनमें पहले, आम जनता में से कुछ लोगों के पास सर्वकालीन उत्पादन कार्य हाथ में है। दूसरे कुछ लोगों के पास अर्धकालीन उत्पादन कार्य हाथ में हैं। तीसरे कुछ लोगों के पास अल्पकालीन उत्पादन कार्य हाथ में हैं। चौथे कुछ लोगों के पास कोई भी उत्पादन कार्य हाथ में नहीं है। इन चार स्वरुपों में दिखने वाली आम जनता में से उत्पादन कार्य शून्य समुदाय द्वारा