भौतिकवाद

by A Nagraj

Back to Books
Page 15

1. कार्यपालिका में प्रशासन कार्य तंत्र और सीमा सुरक्षा में,

2. न्यायपालिका में,

3. विधायिका में - सभी नेता विधायिका के कार्य में लगे है।

इन्हीं के साथ बहुत सारे विभाग समाहित हैं। हर विभाग में अधिकारी होता है । शिक्षा तंत्र भी एक विभाग है। यह कार्यपालिका के अंतर्गत कार्य करता है। आज सर्वाधिक अधिकारी वर्ग संग्रह कार्य में व्यस्त है। विधायिका राजनेताओं के हाथों में है और नेता जनादेश के आधार पर चुना जाता है जबकि राजा वंशानुगत होता था।

विधायिका एक बहुत बड़ा काम हैं। इसी की भागीदारी के लिए अथवा इसका कर्णधार होने के लिए नेताओं को आज आम आदमी ही पहचानकर चुनता है। उल्लेखनीय बात तो यह है कि विधायिका को आम आदमी आज नहीं जानता । नेता लोग भी ठीक से नहीं जानते। इसका ज्ञान किसे है नेता को या जनता को, ऐसा देखने पर दोनों अज्ञानी मिलते है। क्योंकि संविधान पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है। ऐसे विधायिका की नैय्या सम्हालने वाले विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा के जनप्रतिनिधि हैं।

“जन प्रतिनिधित्व विधि से संप्रभुता वोट (मत) देते समय मानव गलती नहीं करता”- इसीलिए जनादेश संप्रभुता का द्योतक है। इसी मान्यता के आधार पर गणतांत्रिक व्यवस्था प्रांरभ हुई। जहाँ-जहाँ अभी भी राजा लोग है वहाँ-वहाँ विधायिका का स्वामी राजा को आज भी प्रधान माना जाता है। राजतंत्र के समय की मान्यता के अनुसार राजा स्वयं ईश्वर का प्रतिनिधि हैं। “राजा कभी गलती नहीं करता-इसीलिए संप्रभुता राजा का स्वरुप है” - ऐसी मान्यताएँ वंशानुगत उत्तराधिकार होने को मान लेती है। इस प्रकार जन प्रतिनिधि रूप में राजगद्दी का दावेदार अथवा राज परंपरा से आया हुआ राजा, राजगद्दी में बैठा होता है। इनके लिए आम जनता का सम्मान -गौरव अर्पित होते ही रहता है । हर समुदाय किसी न किसी राजगद्दी में अर्पित होता ही है, चाहे वह राजतांत्रिक राजगद्दी हो या गणतांत्रिक। अस्तु, इनमें यह चीज देखने को मिली कि संग्रह कार्य इनके लिए अत्यंत आसान हो जाता है। इस विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकला कि-

आदिकाल से अभी तक वस्तु संग्रह करने वाले व्यक्तियों का अनुपात बढ़ते गया।