भौतिकवाद

by A Nagraj

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1. दया :- जिस किसी में जो कुछ भी पात्रता के लिए अर्हता हो उसके लिए वस्तुएँ उपलब्ध नहीं हो रही हों, ऐसी स्थिति में उनमें पात्रता अनुकूल वस्तुओं को सुलभ करा देना ही, दया का व्यवहारिक प्रमाण है।

2. कृपा :- जिस किसी में भी वस्तु और प्राप्तियाँ हों उनके अनुरुप पात्रता न हो अर्थात् मानवीयतापूर्ण नजरिया सहित तन-मन-धन का उपयोग, सदुपयोग विधि से संपन्नता से है। उनमें पात्रता को स्थापित करा देना कृपा है।

3. करुणा :-जिस किसी में भी मानवीयता सहज पात्रता, योग्यता भी न हो और वस्तु भी उपल्बध न हो, उस स्थिति में उनको पात्रता और वस्तु तथा (उपयोग, सदुपयोग विधि) उपलब्धियों को सुलभ करा देना, यही करुणा का तात्पर्य हैं।

इस प्रकार दया, कृपा, करुणा सहज मौलिकता को मानव के कार्य, व्यवहार विन्यास में पहचाना जा सकता है । इसकी आवश्यकता रही हैं। यह मानव संचेतना पूर्ण व्यवहार, संविधान, शिक्षा-संस्कार- जब से मानव परंपरा में प्रमाणित होगी तभी से दया, कृपा, करुणा संपन्न देव मानव, दिव्य मानव सहज व्यक्तित्व को परंपरा के रूप में पहचान सकेंगे, निर्वाह कर सकेंगे। मानव सहज मौलिकता की पहचान मानव परंपरा में होना एक अनिवार्य स्थिति हैं।

1. जागृतिपूर्ण मानव परंपरा का तात्पर्य मानवीय शिक्षा, अनुभव मूलक विधि से व्यवहार, व्यवस्थावादी व कारी शिक्षा, मानवीय संस्कार, मानवीय व्यवस्था अर्थात् परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था और मानवीयता पूर्ण आचार संहिता संविधान है। यह अविभाज्य रूप में वर्तमान मानवीयतापूर्ण परंपरा है।

2. मानवीय सभ्यता, संस्कृति, विधि, व्यवस्था में सामरस्यता मानवीयतापूर्ण परंपरा है।

3. जागृतिपूर्ण मानव परंपरा में समाधान, समृद्घि, अभय, सहअस्तित्व सर्वसुलभता वर्तमान रहता है।

4. प्रत्येक परिवार के में, से, लिए न्याय सुलभता, उत्पादन सुलभता, विनिमय सुलभता वर्तमान होता है।