भौतिकवाद

by A Nagraj

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स्वाभाविक प्रवर्तन और प्रयास है। इसी क्रम में मानव मानवत्व को सहज रूप में पहचान सकता है।

मानव का अध्ययन, विधिवत् करने पर पता चलता है कि मानव जीवन और शरीर के संयुक्त रूप में हैं। जीवन जागृति पूर्वक तृप्त होता हैं। तब मानवीयता अपने आप व्यवहार में प्रमाणित होती हैं। अजागृति की स्थिति में जो मानव भ्रमवश व्यक्त होता है; वह अतिव्याप्ति, अनाव्याप्ति और अव्याप्ति दोषों के रूप में मूल्यांकित होता है। इस प्रकार मानव अजागृतिवश जिन स्वभावों को व्यक्त करता है, उसका स्वरुप निम्न तीन प्रकारों से गण्य होता है-

1. हीनता-जो छल, कपट, दंभ, पाखंड है।

2. दीनता- यह अभाव, अक्षमतावश प्रताड़ित रूप में देखने को मिलता है।

3. क्रूरता- यह पर-धन, पर-नारी, पर-पुरुष और पर-पीड़ा के रूप में देखने को मिलता है ।

यही अमानवीयता का स्वरुप हैं। यह भ्रमवश ही होने वाला प्रकाशन है। मानवीयता मानव का स्वभाव है। यह जागृतिपूर्वक व्यक्त हो पाता है। जीवन ही जागृत होता है। व्यक्त करने वाला मानव ही हैं। यह तीन प्रकार से सार्थक होना पाया जाता है-

1. धीरता :- यह न्याय के प्रति निष्ठा, द्रढ़ता और विश्वास के रूप में दिखाई पड़ता है। यह सब आचरण में प्रमाणित होते हैं। न्याय का मूल स्वरुप जो मानव में दिखाई पड़ता है, यह संबंधों की पहचान और मूल्यों का निर्वाह है। संबंध परस्परता में रहता ही है, उसे पहचानना जागृति हैं। निर्वाह करना निष्ठा है। मूल्यांकन करना व्यवस्था सहज गति है।

2. वीरता :- यह धीरता सहज रूप में जो अभिव्यक्तियाँ होती है, वे रहते हुए दूसरों को न्याय सुलभ कराने में, अपने तन-मन-धन को नियोजन करता है।

3. उदारता :- यह जागृत सहज रूप में हैं। अविकसित के विकास में, संबंधों को निर्वाह करने में, श्रेष्ठता को सम्मान करने में, परिवार; ग्राम परिवार; विश्व परिवार की उपयोगिता-सदुपयोगिता विधि से तन-मन -धन रुपी अर्थ को सदुपयोग सुरक्षा करते हैं।