भौतिकवाद

by A Nagraj

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1. प्रत्येक मानव जागृत होना चाहता है।

2. प्रत्येक मानव जागृत होने के लिए “परम-त्रय” विधि को अपना सकता है।

3. प्रत्येक व्यक्ति जागृति और प्रामाणिकता पूर्वक ही व्यवस्था है और व्यवस्था में भागीदारी कर सकता है।

4. प्रत्येक मानव में “परम-त्रय” विधि से जागृति समीचीन है।

इसलिए और कोई आगे अवस्था पैदा होगी, उस समय में अर्थात् कल्पनातीत लंबे समय के बाद सर्वशुभ होने का दिन आवेगा, तब तक अपनी हविश पूरी कर लेवें। इस प्रकार की मनोगतवादी विधि से अपराधों को अपनाने को, इसे सवैध मानने की हठवादिता को त्याग देना चाहिए। मानवीयता में संक्रमित होना चाहिए और जागृत परंपरा को स्थापित कर लेना चाहिए। जिसमें मानवीयता पूर्ण शिक्षा, मानवीयता पूर्ण संविधान, परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था जिसमें सबकी भागीदारी को पा लेना ही सर्व शुभ स्थिति का, गति का प्रमाण हैं। यह मानव के लिए समीचीन है, इसीलिए मानवीयता में परिवर्तित होने की सहज सहमति सर्वाधिक मानव में प्रस्तुत है ही। अभी तक अव्यवस्था पर आधारित शिक्षा तथा परंपरा से छुटकारा पाने का विकल्प नहीं रहा है, इसीलिए सर्वाधिक मानव छटपटाते आया है। इस तरह जिस विकल्प की तलाश था, वह आ चुका है और किसी अवस्था के इंतजार की आवश्यकता नहीं है।

किसी अवस्था को कम किया जाये, ऐसी कल्पना हो सकती है, पर इससे कम करना भी संभव नहीं हैं। मूलत: अस्तित्व ही चारों अवस्थाओं का स्वरुप है, चारों अवस्थाएँ इस धरती पर साकार हो चुकी है। इसमें संपूर्ण दृश्य , दृष्टा और दृष्टि की संभावना अर्थात् दृष्टि की क्रियाशीलता सभी संभावित हो गई हैं। इतना ही नहीं, यह अविभाज्य रूप में समीचीन हो गया है।

इसमें से किसी एक को अलग करने की कल्पना, यदि-

1. पदार्थावस्था को अलग करें तो यह धरती ही नहीं दिखेगी।

2. प्राणावस्था को अलग करने की कल्पना करें तो वन, वन्य- प्राणी और मानव नहीं दिखेंगे।