भौतिकवाद
by A Nagraj
का कार्यरुप अधिमूल्यन, अवमूल्यन और किसी एक वस्तु के स्थान पर दूसरी वस्तु समझना ही है। इसके उदाहरण स्वरुप सांप और रस्सी को देखा जा सकता है । सांप को रस्सी समझने या रस्सी को सांप समझने से इससे होने वाली परेशानी स्वयं सिद्घ है। लोहा को सोना समझना और सोना को लोहा समझना यह अधिमूल्यन और अवमूल्यन की परेशानी हैं। इस प्रकार इन तीनों स्थितियों में मानव गलती करता ही है। स्वयं परेशान रहता है, फलस्वरुप वातावरण एवं नैसर्गिकता में परेशानी पैदा करता है। क्योंकि जिसके पास जो रहता है उसका बंटन करता है। इस प्रकार देखने पर यह भी तथ्य समझ में आता है कि मानव को दो ही स्थिति में देखा जा सकता है- वह है भ्रम और निर्भ्रम स्थिति। भ्रमित मानव ही अव्यवस्था के रूप में प्रकाशित हो पाता है।
अव्यवस्था तीन उन्मादों के रूप में व्याख्यायित होती हैं। मानव में सम्मोहनात्मक उन्माद लाभोन्माद, कामोन्माद तथा भोगोन्माद के रूप में सर्वेक्षित होता है। विरोधात्मक उन्माद द्रोह, विद्रोह और युद्ध के रूप में सर्वेक्षित है। इन्हीं छ: प्रकार के उन्मादों का स्वरुप दिखाई पड़ता है। इसके प्रभाव में कर्त्ता सहित सभी अव्यवस्था के रूप में दिखाई पड़ते है। अव्यवस्था मूलत: भ्रम है। ऐसे सर्वेक्षण को संपन्न करना तभी संभव है, जब मानव निर्भ्रम हो और व्यवस्था का स्वरुप तथा अधिकार कम से कम एक मानव के पास हो। मानव इतिहास के अनुसार इस घटना की तीव्र प्रतीक्षा रही। इस बात को इस प्रकार से समझाया जा सकता है कि उन्मादित होते हुए भी मानव ही, इन उन्मादों के परिणाम स्वरुप जो अव्यवस्थाएँ हुई, उसकी समझ के बराबर में पीड़ित भी होते आया। भले ही यह सबमें न हुआ हो अधिकांश लोगों में अव्यवस्था की पीड़ा है। इस सर्वेक्षण के साथ यह भी देखने को मिलता है कि इन उन्मादों के लिए हमारी कला, शिक्षा और शासन रुपी व्यवस्था तंत्र सहायक हो गया है। विकल्प के लिए कोई कल्पना भी नहीं रही है इसलिए विवशता पूर्वक इसे झेलने के अलावा दूसरा रास्ता दिखता नहीं। इसी स्थिति में कराहते हुए अधिकांश व्यक्ति इस धरती पर पाये जाते हैं।
पूर्ववर्ती विचारों के अनुसार उक्त उन्मादों के विपरीत कोई चीज है तो वह है भक्ति और विरक्तिवादी निबंध। ये पावन ग्रंथ माने गये और इनका प्रचार करें। इसकी अंतिम परिणति के रूप में मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरिजाघरों के प्रति अथवा पूजा स्थलों के प्रति आस्था केन्द्रीभूत हुई। आस्था के आधार पर बहुत सारे विशिष्ट लोगों को,