जीवनविद्या एक परिचय
by A Nagraj
सोचता हूँ। सौर ईंधन की ओर लोगों का ध्यान है ही और अधिकाधिक आतुरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। सौर ईंधन को और भी व्यवहारिक यंत्रों, संयंत्रों में उपयोग लाने की जरूरत है। इस तरह से धरती पर जितनी ऊर्जा की आवश्यकता है उससे ज्यादा ऊर्जा धरती की सतह पर उपलब्ध होने की बात समझ में आती है। इस तरह से कोयला और पेट्रोलियम का उपयोग बंद किया जाये, उसके स्थान पर वनस्पति तेल, प्रवाह शक्ति, तरंग, वायु और सूर्य ताप का उपयोग किया जा सकता है उसके पश्चात यह परीक्षण किया जा सकेगा कि अभी तक जो गढ्ढे किये गये हैं उसे धरती स्वयं पाटने में कितनी सक्षम है।
तीसरे एक और तलवार मानव पर लटक रही है। इस धरती पर जब भी पानी बनने की घटना हुई होगी, ऐसी घटना के मूल में यदि शोध किया जाए तो ब्रम्हाण्डीय किरणों के संयोग से यह घटना घटित हुई है ब्रम्हाण्डीय किरणें ही इस घटना का एक मात्र स्रोत है अब उसकी निरंतरता बन चुकी है। अभी धरती के वातावरण का क्षय हुआ है। इससे ऐसी संभावना बन सकती है कि वही ब्रम्हाण्डीय किरणें यदि विपरीत विधि से प्रभाव डालें तो धरती पर से पानी समाप्त हो सकता है। जिस-जिस स्रोत से धरती का आवरण क्षतिग्रस्त हुआ है विज्ञानी उसे पता लगा लिए हैं। केवल स्रोत पता लगाने से तो क्षति ठीक होगी नहीं, बनाने की आवश्यकता है। बनाने की विधा में यही बात आती है धरती के साथ जो-जो अत्याचार किया है उसे रोकना पड़ेगा। खनिज तेल, कोयला और विषाक्त गैसों और तरल पदार्थों को जो मानव ने युद्ध की सामग्री के लिए बनाया है उसी से धरती का सुरक्षा कवच क्षतिग्रस्त हुआ ऐसा पेपर में पढ़ने आता है। यदि यह सच्चाई है तो इन सब प्रक्रियाओं को रोकना होगा जिससे धरती का वातावरण क्षतिग्रस्त होता है। मानव क्षतिग्रस्त करने के बाद क्षतिपूर्ति का उपाय भी सोचता है, करता है यह बहुत बड़ा गुण है जबकि अन्य जीवों में ऐसा नहीं होता। किन्तु धरती की क्षतिपूर्ति के लिए मानव ने अभी तक कोई कार्य नहीं किया। बल्कि हर दिन और बिगड़ाव देखने को मिलता है। कब तक करेंगे? क्या कभी इस बिगड़ाव को ठीक करने के बारे में कुछ करेंगे?