जीवनविद्या एक परिचय

by A Nagraj

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करें और तृप्ति पा जायें ऐसा कोई रास्ता हमको मिला नहीं। ऐसा कोई गुरू हो तो हम उसको आमंत्रित करते हैं। वंशानुषंगीय विधि से समझाने वालों को मैंने सुना वे भी हमें समझाने में सफल नहीं हुए। इसी तरह भौतिकवादी तथा सापेक्षवादी सिद्धांत भी मानव को परिभाषित करने में असफल रहे हैं। यदि इन तीन सिद्धान्तों से मानव विश्लेषित हो पाता है तो उसे स्वीकार किया जाये। अन्यथा मानव को मानव के अर्थ में पहचाना जाये। मानव को मानव के अर्थ में पहचानने के लिए यह प्रस्ताव प्रस्तुत है।

इसके पहले आदर्शवादी विधि की बात हुई जिसमें ईश्वर को तारने वाले के रूप में प्रस्तुत किया गया है। ईश्वर को हमने देख लिया, उसके पास ऐसा कोई फैक्ट्री नहीं है जो तार सके। ईश्वर को किस रूप में देखा? ईश्वर को व्यापक रूप में देखा। साम्य ऊर्जा के रूप में देख लिया जिससे हर इकाई ऊर्जित है। व्यापक में हर इकाई सहअस्तित्व में है इसे देख लिया। ईश्वर में और क्या देखना बाकी है? अगर कुछ बाकी है तो आप देख लेना और संसार को दिखा देना। आप अनुसंधान करने के लिए स्वतंत्र हैँ। मैंने जो देखा-समझा वह आपके सामने प्रस्तुत है ही।

हम न तो संवेदनशील विधि से पूरे हुए न ही यांत्रिक विधि से। संवेदनशील विधि से इन्द्रिय-सन्निकर्ष को हम केन्द्र में लाते हैं फलस्वरूप हमारे इन्द्रिय-सन्निकर्ष की हैसियत और अपेक्षा एवं हमारे भाई की हैसियत और अपेक्षा दोनों में दूरियां हैं। इस तरह से मानव को विविधता में बंटने की आवश्यकता बन ही जाती है जिसके अनुसार संवेदनशील विधि से मानव व्यक्तिवादी हो ही जाता है। दूसरी विधि, भोगवादी विधि से व्यक्ति, व्यक्तिवादी होता ही है उसे हम अनुभव करके बैठे ही हैं। तीसरी विधि, जो पूर्वजों ने बतायी थी भक्तिवादी-विरक्तिवादी। इनमें भी व्यक्तिवादिता का अंत नहीं होता है। इस प्रकार मानव अभी तक जितना भी घोर परिश्रम किया, अथक प्रयास किया, घोर आशा से भर-भर कर प्रयत्न किया सारे प्रयत्नों के विफल होने का आधार व्यक्तिवादी ही सिद्ध हुआ है। व्यक्तिवाद, सहअस्तित्व का विरोधी है। यही सारे मानव के टूटने का आधार बना। व्यक्ति को जीना कहाँ है? सहअस्तित्व में। सहअस्तित्व में जीने का सरल उपाय है मानव के साथ सहअस्तित्व को जानना-मानना-पहचाना जाये। इसको पहचानते हैं तो