जीवनविद्या एक परिचय
by A Nagraj
ज्यादा सफल हुए हैं ये भी विदित है। हम ये सब सफलता के लिए किसी को विफल होने की बात करते हैं तो असंतुलन होता है। हमने अभी तक जो सुविधा संग्रह का काम किया है उसमें धरती तंग हो गयी है। धरती को बचा पाना संभव है कि नहीं ये भी एक प्रश्न चिन्ह है। इस क्रम में जो कुछ भी अपराध धरती पर कर रहे हैं उसको रोकना ही पड़ेगा और अपराध विहीन विधि को समझना पड़ेगा। उसके लिए अभी जितनी भी विज्ञान की बात किये हैं अथवा कला और शिक्षा में प्रवेश हो चुकी है इससे अपराध मुक्ति नहीं हो सकता। इसमें डूबने की जगह है। इसमें धरती को नाश करने की जगह है, मानव एक दूसरे को तंग करने की जगह है। अभी तक हम बड़े-बड़े राज्य मिलकर के कोई सभा बना दिये हैं, संयुक्त राष्ट्र संघ। जिसमें बहुत से सम्मेलन हुए पर आज तक यह निर्णय नहीं हो पाया कि सामरिक शक्ति अधिकार इस संघ में होना चाहिए या राष्ट्रों में होना चाहिए या नहीं होना चाहिए। समर होना चाहिए या नहीं होना चाहिए। इसी प्रकार शिक्षा के लिए हर वर्ष में चार बार समीक्षा होती है। पुनः विचार, पुनः समीक्षा किन्तु आज तक यह तय नहीं हुआ कि मानव के लिए सुखद शिक्षा क्या होना चाहिए।
बचपन से मैनें अध्ययन किया है कि हर मानव संतान सही करने का इच्छुक रहता है। न्याय पाने की आवश्यकता उनमें रहती है। सत्य वक्ता होता है। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं वैसे-वैसे झूठ बोलना आ जाता है क्योंकि हम वातावरण ऐसा बनाएं हैं, झूठ बोले बिना रहा नहीं जाता। व्यापार में झूठ समाया ही हुआ है। राज्य शासन में झूठ है, शिक्षण में सच्चाई उभरती नहीं है। तो इस ढंग से आदमी कहाँ जायेगा। इस तरह से मानव परिस्थितियों से बाध्य होकर, तदनुसार व्यवहार व दिनचर्या को बनाता है। इस तरह मानव किसी लक्ष्य तक पहुँचा नहीं और न पहुँच सकेगा सभी बड़ी-बड़ी संस्थाएं, राज्य संस्थान सभी में बड़े-बड़े प्रोजेक्ट पड़े हैं पर हम संकट से छूट नहीं पाये।
इस संकट से छूटने की आवश्यकता तो है किन्तु वह केवल तभी होगा जब आदमी समझदार होगा और यह जब भी होगा इस एक ही विधि से जीना होगा वह है मानवीयता पूर्ण आचरण। मूल्य, मूल्यांकन इसका संबंध सहअस्तित्व सहज विधि से है। इसके लिए हम आपको कोई प्रयोगशाला नहीं बनाना है। ना कोई युद्ध करना