जीवनविद्या एक परिचय

by A Nagraj

Back to Books
Page 100

प्रश्न :- आपका सारा प्रतिपादन ही सहअस्तित्व मूलक है। आपने कहा प्रकृति सत्ता में है। इस तरह सहअस्तित्व सर्वस्व है। आप कहते हैं जहाँ कोई इकाई नहीं है वहाँ भी सत्ता है और जहाँ इकाइयाँ ठसाठस भरी है वहाँ भी सत्ता है इसे समझाइये।

उत्तर :- व्यापक वस्तु हमको जल्दी समझ में आता है। जिसे खाली स्थान कहें, सत्ता कहें, परमात्मा कहें, ईश्वर कहें। ये क्या चीज हैं। यह मूल वस्तु है, ऊर्जा है। यह ऐसी वस्तु है जिसमें जो भी इकाईयाँ है इससे प्रेरित होने योग्य है। प्रेरित होना कैसे होता है क्या ऊपर से धक्का मारता है? पहले ऐसा भी कहा गया कि एक शुरू हुआ फिर उसके धक्के से एक-एक करके सब शुरू हो गये। सत्ता में धक्का देने वाली कोई गुण नहीं है। इसमें न तरंग है, न गति, न दबाव है इसलिए धक्का देने वाली बात आती नहीं है। हर वस्तु सत्ता में ऊर्जित है, प्रेरित है यह तो प्रमाण है ही। यह सर्वत्र विद्यमान है ही। हर इकाई व्यापक में डूबे भी हैं, घिरे भी हैं। एक-एक अलग होने का अर्थ ही है कि उनके बीच में सत्ता है। बीच में सत्ता न हो तो अलग-अलग हो ही नहीं सकते। जुड़ता भी इसलिए है कि बीच में सत्ता है। इस प्रकार रचना विरचना का आधार हो गया और ऊर्जा संपन्नता है ही वस्तु में क्योंकि क्रियाशील हैं ही।

इस वस्तु को पुन: दूसरे ढ़ंग से अध्ययन किया। एक तो इकाईयों के रूप में वस्तुएं दिखती है, उनका आयतन और व्यापक रूप में दिखती है उसका आयतन समान है या भिन्न है ये बात सोचा गया। व्यापक वस्तु का कोई आयतन बनता ही नहीं, सीमा बनता ही नहीं।

भौतिकवाद के अनुसार इकाईयाँ जहाँ रहती है वहाँ व्यापक सत्ता नहीं रहती अर्थात् इकाईयाँ व्यापक वस्तु को हटा देती है। अत: इकाईयाँ व्यापक वस्तु से बलवान (भारी) मानी गयी है। जबकि यथार्थ में देखा सारी वस्तुएँ शून्याकर्षण में है। धरती, सूरज, सौरमंडल, आकाशगंगाएं सभी शून्याकर्षण में है। शून्याकर्षण स्थिति में है- इससे यह स्पष्ट होता है कि सत्ता और इकाई की परस्परता में भार नहीं है। जबकि इकाईयों की परस्परता में ही भार स्पष्ट होता है। जैसा दो परमाणुओं की परस्परता में अणु बनने की प्रवृत्तिवश भार स्पष्ट होता है। इस प्रकार एक से अधिक अणु