अर्थशास्त्र
by A Nagraj
उत्पादन करने की विधि विहित चित्रण, विश्लेषण सहित मानसिकता से है। ज्ञान का तात्पर्य जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने से है। विज्ञान का तात्पर्य तर्कसंगत विधि से ज्ञान को प्रवाहित करने का विचार है। तात्विक विधि से-कालवादी, क्रियावादी, निर्णयवादी (प्रमाणित और परिमाणित करने वाला) विचार विधि ही विज्ञान है। इससे सुस्पष्ट है मानव कृतियों का जो कुछ भी अक्षय बल है, शक्ति है वह जागृतिपूर्वक व्यक्त होने की स्थिति में इन्हीं पाँचों रूपों में कर्ता-भोक्ता के रूप में प्रमाणित हो पाता है। उक्त पाँचों प्रकारों से प्रमाणित होने वाली क्षमता ही स्वयं में दृष्टा पद का प्रमाण है। यह भी समृद्धि का ही द्योतक होना पाया जाता है और सहअस्तित्व में ही जागृति सम्पन्न होता है। इस विधि से मानव ही जागृत होने के उपरांत जो स्वरूप स्पष्ट हो पाती है, उसमें भी कहीं लाभ का स्थान न होकर सहअस्तित्व और समृद्धि ही दिखाई पड़ती है।
मानव ने जो कुछ भी लाभोन्माद, भोगोन्माद, कामोन्माद में ग्रसित होने का परंपरा बना लिया है इसके मूल में ईश्वरवाद और वस्तुवाद दोनों का अंतिम बिंदु कार्य-व्यवहार के रूप में भय और प्रलोभन ही रहा। प्रिय, हित, लाभात्मक दृष्टियाँ जागृति क्रम में क्रियाशील रहता रहा। न्याय, धर्म और सत्य के प्रति जागृत होने का प्रमाण प्राप्त नहीं हो पाया। इस विधि से मानव अपने कृतियों को कुछ भी कर पाया इन्हीं प्रिय, हित, लाभपूर्वक किया। इसके मूल में भय से मुक्ति, प्रलोभन से अनुरक्ति और आस्थाओं (न जानते हुए मानने के) के आधार पर रहस्यमूलक विधि से विरक्ति का भी चर्चा किए। कार्य-व्यवहार में भय और प्रलोभन ही हाथ लगता रहा। इसमें से मानव भय को नकारता रहा, प्रलोभनों को स्वीकारता रहा। फलस्वरूप तीनों उन्मादों से ग्रसित होना परंपरा में स्वीकार हुआ। इसी के साथ-साथ तृप्ति बिन्दु और आगे और आगे होता ही गया, जैसा मृगतृष्णा मरीचिका में होता है। इससे सुस्पष्ट हो गया है कि हम मानव उन्माद से कैसे ग्रसित हुए।
विचारणीय बिन्दु विश्व मानव के सम्मुख है खनिज तेल खनिज कोयला और खनिज वस्तु क्या इन वस्तुओं का मानव उत्पादन करता है? शोषण करता है? अपहरण करता है? और वन और वनोपज संबंध में भी विचार करना आवश्यक है। उक्त मुद्दे के संबंध में सर्वाधिक विचारशील मेधावी इस बात को स्वीकारते हैं कि खनिज तेल और कोयले से