अर्थशास्त्र
by A Nagraj
संग्रहवादी सभ्यता के लिए विवश होता गया। उल्लेखनीय तथ्य यही रहा संग्रह का तृप्ति बिन्दु किसी भी देश काल में किसी एक व्यक्ति को भी नहीं मिल पाया। इसका प्रभाव सभी वर्ग पर प्रभावित है। इसमें कुछ लोग ऐसे सोचते हैं कि अध्यात्मवादी विचार और भौतिकवादी विचार इन्हीं में कहीं संतुलन बिन्दु की आवश्यकता है। अध्यात्मवादी विचार के अनुसार अन्तरमुखी विचार होना पाया जाता है और भौतिकवादी विधि से बर्हिमुखी विचार होता है। बर्हिमुखी विचार से विज्ञान का अनुसंधान होता है और अर्न्तमुखी विचार से विज्ञान का विकास नहीं होता है। स्वान्त: सुख या शांति की संभावना बनती है इन कारणों के साथ-साथ मानव को कुछ देर अन्तर्मुखी, कुछ देर बहिर्मुखी रहना चाहिए ऐसी मान्यता पर कुछ लोग अपना मत व्यक्त करते हैं। इस विधि में हर वर्ग, हर तबका, हर जाति, हर संस्कृति यथास्थिति को बनाए रखने के लिए संभावनाओं पर बल देते हैं। इसका प्रबोधन अधिकांश रूप में विज्ञान व्यक्ति जो अपने संग्रह कार्य में जुटे रहते हैं। विद्यार्थियों को इन बातों के लिए प्रेरणा देते हैं। फलस्वरूप ऐसे प्रयासों का निरर्थक होना भावी हो जाता है। इसी क्रम में यह भी बताया करते हैं, ऐसा बैठो, ऐसा सोचो, ऐसा ध्यान करों, किसी एक भंगिमा-मुद्रा में कुछ देर बैठे रहने का अभ्यास होने पर किसी को ध्यान होना-करना मान लेते हैं। यह भी इसके साथ-साथ देखा गया है इन सभी प्रकार की साधनाएं अंतरतुष्टि का साधन मानी जाती है। जबकि अंतरतुष्टि जागृति के रूप में ही होना पाया जाता है।
जागृति मूलत:, आमूलत: अथवा सम्पूर्णतया सहज होना, प्रमाणित होना तब संभव हुआ जब अथवा जिस क्षण में जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान में पारंगत और प्रमाणित हुए। सम्पूर्ण अस्तित्व ही सहअस्तित्व के रूप में प्रमाणित होना तभी संभव हो पाया जब जीवन में जागृति संभव हुई। जीवन का स्वरूप रचना, शक्ति, बल, लक्ष्य के संबंध में विभिन्न स्थली में स्पष्ट किया जा चुका है। जीवन रचना, गठनपूर्ण परमाणु (चैतन्य इकाई) सभी मानव में समान है, इसी प्रकार जीवन शक्ति और बल अक्षय होने के कारण समान और जीवन का लक्ष्य केवल जागृति होने के कारण सभी नस्ल, रंग, जाति, वर्ग, मत, संप्रदाय, भाषा, देश में रहने वाले सभी मानव में समान होना पाया जाता है। यही जीवन ज्ञान पर आधारित विचार है और शास्त्रों को प्रणयन और अवलोकन करने का आधार है। जीवन ज्ञान हर व्यक्ति में, से, के लिए; हर देश काल में संभव है। इसी आधार पर आवर्तनशील अर्थशास्त्र का प्रणयन