अर्थशास्त्र
by A Nagraj
हर मानव में कल्पनाशीलता और कर्म स्वतंत्रता प्रमाणित होते ही रहा। यही प्रवृत्ति और कल्पनाशीलता सहज उद्गमन का भी तात्पर्य है। यही पीढ़ी से पीढ़ी में परिवर्तन का कारण रहा है। परिवर्तन वन-वनस्पति-काष्ठ युग से शिलायुग और धातुयुग तक पहुँचा। यह ग्राम और कबीले के रूप में जीने तक पहुँच गया। कुछ परिवेश में जीते आये मानव ने जीव-जानवरों को अपने आहार के रूप में स्वीकारा, कुछ परिवेश में जीये हुए मानव, वनस्पतियों से पेट भरना सीखते आया। अधिकांश मानव जो आहार को वनस्पतियों से प्राप्त करते रहे हैं वे युग परिवर्तन क्रम में कृषि कार्य को अपनाए। यहाँ यह तथ्य स्मरणीय है कि वन से मानव के खाने योग्य चीजों को अनाज के रूप में भी पहचानना आरंभ हुआ। साथ ही जंगल में पाये जाने वाले कुछ प्रकार के जानवरों को स्वाभाविक रूप में ही मानव ने अपनी नैसर्गिकता प्रदान कर, उपयोग करने के अर्थ को सार्थक करते आया। उपयोगिताएं कृषि के लिए सहायक होने के क्रम में और आहार के लिए सहायक होने के क्रम में सोची गई। इस स्थिति तक मूलत: आवश्यकताएं खाने-पीने, ओढ़ने-पहनने के साथ-साथ सोने और रहने के निश्चित स्थान, उसके स्वरूप तक पहुँचे। नस्ल और रंग संबंधी भय और द्वेष, विविध कबीला समूहों ग्रामवासियों के साथ बना ही रहा। अपनी-अपनी प्रजाति के समूहों को सुदृढ़ बनाने के क्रम में, सतत परिवर्तन होते ही रहा। हर परिवर्तन के साथ आवश्यकताओं का स्वरूप, तादात और गुणवत्ता अपने आप बदलती रही। यह दो विधाओं में अपने-आप स्पष्ट होते आई। पहला आहार, आवास, अलंकार विधा में परिवर्तन, दूसरा भय और द्वेष वश आक्रमण प्रतिरोध कार्यों के क्रम में घूंसा, झापड़, गला घोटने की क्रियाओं से चलकर पत्थर और डंडे से मारपीट करने की एक लहर रही। पत्थर और डंडे के मारपीट से धातुओं से बनी हुई औजारों का प्रयोग अपने आप में और एक कदम रहा। मारपीट में, आक्रमण और प्रतिरोध में एक और परिवर्तन का स्वरूप रहा। इस अवधि तक यह आक्रमण और प्रतिरोध का कार्यक्रम दो विधाओं में गुजरते रहे। पहली विधा क्रूर जन्तुओं के आक्रमण का प्रतिरोध और दूसरी भयभीत मानवों के ऊपर किए गये आक्रमण और उसका प्रतिरोध के इस अवधि तक औजारों को (अर्थात् मारपीट के लिए प्रयोग किए गये औजारों को) और आहार, आवास, अलंकार के लिए प्राप्त वस्तुओं का एक दूसरे के बीच स्वेच्छा पूर्वक आदान-प्रदान होते रहा। दूसरा, एक दूसरे की वस्तुओं को अथवा एक समुदाय की वस्तुओं को, दूसरा समुदाय आक्रमण पूर्वक छीना-झपटी करते रहा या छीना झपटी के लिए आक्रमण