अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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ज्ञानावस्था, पदार्थ, प्राण और जीवावस्था के लिए पूरक होना आवर्तनशीलता है। जीवन ज्ञान सहित सहअस्तित्ववादी विचार मानवीयतापूर्ण आचरण पूर्वक व्यवस्था एवं समग्र व्यवस्था में भागीदारी का प्रमाण मानव और मानव परंपरा में प्रमाणित करना अपेक्षित है।

व्यवस्था एवं व्यवस्था में भागीदारी क्रम में ही मानव को भौतिक समृद्धि, बौद्धिक समाधान सम्पन्न होता हुआ देखा गया है। हर परिवार जागृतिपूर्वक इस वैभव से सम्पन्न होना समीचीन है। यह जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन, मानवीयता पूर्ण आचरण सम्पन्नता का द्योतक और प्रमाण होना पाया जाता है।

जीवन प्रत्येक व्यक्ति में समान रूप से क्रियाशील रहना पाया जाता है। इसके लिए अध्ययन वस्तु करने वाला मानव है। मानव के अध्ययन क्रम में सर्वप्रथम हम कल्पनाशीलता और कर्म स्वतंत्रता को देख पाते हैं। कल्पनाशीलता का उपयोग विविध विधि से होता हुआ कर्म स्वतंत्रता सहज कार्य-विन्यास गति में सर्वेक्षित होना पाया जाता है। इसके साथ परीक्षण-निरीक्षण एक आवश्यकता बनी रहती है। आबाल, वृद्ध, गरीब-अमीर, ज्ञानी-अज्ञानी, विद्वान और मूर्ख सभी व्यक्तियों में कल्पनाशीलता कर्म स्वतंत्रता संप्रेषित होता हुआ देखने को मिलता है। इससे ज्ञात होता है कि सभी मानव में यह समान रूप से विद्यमान है। समानता के मुद्दे में मानव का ध्यान मात्रा और गुणों के ओर दौड़ना स्वाभाविक है। यह जीवन का ही एक अपेक्षा है साथ ही कल्पनाशीलता कर्मस्वतंत्रता जीवन सहज गति स्वरूप होना पाया जाता है। तथापि जीवन अपने मात्रा सहित ही वैभवित है। ऐसी मात्रा को एक गठनपूर्ण परमाणु के रूप में जाना गया है और माना गया है। फलस्वरूप जीवन के क्रियाकलापों को पहचानना संभव हो गया है। इसके प्रमाण में निर्वाह करना स्वाभाविक घटना है अथवा स्वाभाविक स्थिति है। (गठनपूर्ण परमाणु का तात्पर्य यह है कि उसमें कोई अंश, किसी भी परिवेश से अथवा मध्य से विस्थापित न होता हो और न ही उसमें प्रस्थापित होता हो। यही भार बंधन और अणु बंधन से मुक्त और क्रम से आशा, विचार, इच्छा बन्धनों से कार्य करता हुआ देखने को मिलता है। इसे प्रकारान्तर से जीव संसार में भी आशा बंधन को वंशानुषंगीय विधि से कार्य करता हुआ देखने को मिलता है। प्रत्येक मानव में ये तीनों प्रकार के बंधन सहित कार्य करता हुआ कल्पनाशीलताओं, उसके क्रियान्वयन क्रम में