अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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परिवार मूलक स्वराज्य का अंतर संबंध पाँच आयामों से सूत्रित, संबंधित एवं व्याख्यायित रहना ही परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था का प्रमाण होता है। इनमें से हर आयाम दूसरे आयाम के साथ अविभाज्य रूप में सूत्रित रहता है। यही व्यवस्था का तानाबाना है। इस विधि से हर स्तरीय परिवार सभा, उसकी रचना और कार्य विधि में सामरस्यता और एकात्मता स्पष्ट हो जाता है। कार्यप्रणाली में दूसरे स्तरीय परिवार सभा के साथ सामरस्यता, एकरूपता के आधार पर ही सामरस्यता का अनुभव होना हर स्तरीय परिवार सभा का उद्देश्य और निष्ठा की समानता ही एकात्मता का तात्पर्य है। एकात्मता का तात्पर्य स्पष्ट उद्देश्य और निष्ठा के स्वरूप में है। सार्वभौम उद्देश्य के संबंध में विविध प्रकार से स्वरूप को स्पष्ट किए हैं। उल्लेखनीय तथ्य यही है कि सार्वभौम उद्देश्य समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व है। प्रत्येक मानव का जीवन सहज उद्देश्य भी समान है यह है जीवन जागृति। हर मानव जागृतिपूर्वक ही अपने को ज्ञान, दर्शन, विज्ञान, विवेक सम्पन्नता सहित मानवीयतापूर्ण आचरण सहित जीने की कला को वरता है। इस प्रकार जागृति ही अनुभव, विचार, व्यवहार (परिवार और समाज) और व्यवस्था में जीने के स्वरूप में प्रमाणित होना पाया जाता है। इन सभी अवयवों पर भी मनस्वियों का ध्यानाकर्षण अवधारणा सुलभ होने के अर्थ में प्रस्तुत किया गया है।

मानव अपने जीवन जागृति और सर्वमानव शुभ के अर्थ में जीने की कला विधि सहज ही व्यवस्था का स्वरूप होना नियति क्रम और जागृति क्रम का तृप्ति बिन्दु है। इसीलिए यह दोनों सम्पूर्ण मानव का उद्देश्य, प्रत्येक जीवन का उद्देश्य समान होने के फलस्वरूप इन्हीं दो ध्रुवों के मध्य में सम्पूर्ण व्यवस्था का ताना-बाना स्पष्ट हुआ है। यह मूलत: अस्तित्व स्थिर और विकास और जागृति निश्चित होने के लिए सहअस्तित्व सहज सूत्र पर ही आधारित है। इन तथ्यों को सुदृढ़ रूप में जानने-मानने के लिए अस्तित्व ही नित्य वर्तमान और सहअस्तित्व का स्वरूप होना प्रतिपादित हो चुका है।

इस चित्र में स्पष्ट किया गया पाँचों आयाम रेखाकार और वर्तुलाकार विधि से अन्तर संबंधित और कार्यरत रहते हैं। रेखाकार विधि से अन्तर्संबंध, वर्तुलाकार विधि से पांचों समितियों को अविभाज्य संबंध आवर्तनशीलता के रूप में देखने को मिलता है। इसके मूल में मानव ही मानवीय शिक्षा-संस्कार पूर्वक स्वायत्त मानव, परिवार मानव (समाज मानव) और व्यवस्था मानव के रूप में प्रमाणित होना ही परिवार मूलक के स्वराज्य