अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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परंपरा जागृत न होने का फल ही है भ्रमित रहना। भ्रमित परंपरा में अर्पित हर मानव संतान भ्रमित होने के लिए बाध्य हो जाता है। परंपरा का कायाकल्प अर्थात् परिवर्तन और सर्वतोमुखी परिवर्तन एक अनिवार्यता है ही। इसकी सफलता जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान पर आधारित है जो अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन है जिसके आधार पर ही मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद) स्पष्ट रूप में अध्ययनगम्य है।

मध्यस्थ दर्शन मूलत: मध्यस्थ सत्ता, मध्यस्थ क्रिया, मध्यस्थ गति और मध्यस्थ जीवन का प्रतिपादन है जो वांङ्गमय के रूप में स्पष्ट हो चुका है जिसके अध्ययन से मानवीयतापूर्ण आचरण स्वयं स्फूर्त रूप में प्रमाणित होता है।

जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान ही अनुभव बल का स्वरूप और स्रोत है। यही अनुभव बल, विचार शैली के रूप में संप्रेषित होते हुए देखा जाता है। ऐसे स्थिति में विज्ञान सम्मत विवेक, विवेक सम्मत विज्ञान विधि से विचार शैली का स्वरूप होना पाया गया। ऐसी विचार शैली स्वयं में मध्यस्थ दर्शन सूत्रों से एवम् सहअस्तित्ववादी सूत्रों से सूत्रित होना स्वाभाविक रहा। यही सहअस्तित्ववाद, समाधानात्मक भौतिकवाद, व्यवहारात्मक जनवाद और अनुभवात्मक अध्यात्मवाद के रूप में प्रस्तुत है। यही विचार शैली पुन: शास्त्रों के रूप में संप्रेषित हुई है। इसमें से आवर्तनशील अर्थचिंतन शास्त्र और व्यवस्था का मूल स्वरूप इस प्रबंध के द्वारा मानव कुल के लिए अर्पित है। इसी के साथ-साथ व्यवहारवादी समाजशास्त्र जो स्वयं में मानवीयतापूर्ण आचार संहिता रूपी संविधान सूत्र और व्याख्या है तथा मानव संचेतनावादी मनोविज्ञान मानव कुल के विचारार्थ प्रस्तुत है। भ्रमित मानव भी शुभ चाहता है। शुभ का स्वरूप समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व है। यह सर्वमानव स्वीकृत है। इनके सार्वभौमता को अध्ययन विधि से सुस्पष्ट करना ही मध्यस्थ दर्शन (अनुभव बल), विचारशैली और शास्त्र (जीने की कला) का उद्देश्य है। अतएव आवर्तनशील अर्थचिंतन का आधार सहअस्तित्व तथा सहअस्तित्व में मानव में अनुभव सहज जीना ही है। अस्तित्व ही स्वयं सत्ता में सम्पृक्त प्रकृति के रूप में सहअस्तित्व होना देखा गया है। यही अस्तित्वमूलक मानव केन्द्रित चिंतन का ध्रुव बिन्दु है। अस्तित्व नित्य वर्तमानता के रूप में स्थिर होना नित्य प्रमाण है। अस्तित्व ही सहअस्तित्व नित्य प्रमाण होने के आधार पर परमाणु में विकास, गठनपूर्णता जीवनपद फलत: परिणाम का अमरत्व ज्ञात होता है। जीवन ही