अर्थशास्त्र
by A Nagraj
जीवनी क्रम, जीवन जागृति क्रम में गुजरता हुआ जागृत पद में क्रियापूर्णता, जिसका प्रमाण में मानव, स्वायत्त मानव, परिवार मानव, व्यवस्था मानव के रूप में स्वयं में व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी का प्रमाण उसमें पारंगत विधिपूर्ण शिक्षा-संस्कार, परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था और मानवीय आचार संहिता रूपी संविधान का अध्ययन सहज है। इसी के साथ-साथ सहअस्तित्व में संपूर्ण जड़ प्रकृति अर्थात् रासायनिक-भौतिक रचना-विरचना का अध्ययन स्वाभाविक रूप में समाहित है। जिसमें सम्पूर्ण भौतिक वस्तुओं को तात्विक, मिश्रण और यौगिक रूप में अध्ययन करना सहज हो चुका है और रासायनिक द्रव्यों में, से, प्राणकोषा, और प्राणावस्था का रचनासूत्र (प्राणसूत्र) जीव शरीर और मानव शरीर रचना सूत्र क्रम में विकसित होकर इस धरती पर चारों अवस्थाओं में परंपरा के रूप में स्थापित रहना पाया गया। सहअस्तित्व नित्य प्रभावी होने के आधार पर जड़-चैतन्य प्रकृति में सहअस्तित्व सहज रूप में वर्तमान है। संपूर्ण संबंधों का सूत्र भी सहअस्तित्व ही है। जीवन और शरीर का संबंध भी निश्चित अर्थ और प्रमाण सहित ही वर्तमान हैं। जीव शरीरों के साथ जीवन का संबंध वंशानुषंगीय विधियों से कार्य करने के रूप में प्रमाणित है मानव शरीर और जीवन का संबंध संस्कारानुषंगीय विधि से सार्थक और प्रमाणित होना पाया जाता है। संस्कार का तात्पर्य ही है स्वीकृति पूर्वक (अवधारणा पूर्वक) प्रवर्तनशील होने से अथवा प्रवर्तित होने से है। यही मानवीय संस्कृति, सभ्यता, विधि, व्यवस्था के रूप में सहज अभिव्यक्ति, संप्रेषणा, प्रकाशन है।
पंचकोटि के मानव चित्र से स्पष्ट है मानवीयतापूर्ण मानव ही परिवार मानव पूर्ण स्वत्व स्वतंत्रता अधिकारपूर्वक स्वयं स्फूर्त विधि से परिवार में समाहित जितने भी सदस्य या मानव होते हैं (स्त्री-पुरुष-आबाल-वृद्ध) उनके परस्परता में संबंधों को पहचानते हैं, संबोधन पूर्वक मूल्यों का निर्वाह करते हैं। साथ ही दोनों मूल्यांकन करते हैं, उभय तृप्ति का अनुभव करते हैं। यही विश्वास के नाम से जाना जाता है। सुख, शांति, संतोष, आनंद का नाम ही विश्वास है। यह विश्वास परस्परता में होना स्पष्ट है। ऐसी परस्परताएं नैसर्गिक पर्यावरण मानवकृत वातावरण जैसा - मानवीय शिक्षा संस्कार, परिवार मूलक मानवीय आचार संहिता रूपी स्वराज्य, व्यवस्था, संविधान और मूल्य मूलक, लक्ष्य मूलक प्रभेदों में प्रवर्तन के आधार पर मानव का व्यवस्था पूर्वक सुखी होना स्पष्ट है।