मानवीय संविधान
by A Nagraj
मानवीयतापूर्ण संविधान सहअस्तित्व सहज गति प्रतिष्ठा है।
मानवीयतापूर्ण आचरण मूल्यांकन परस्परता में संविधान की धारक-वाहकता है।
मानवीयतापूर्ण संस्कृति समाज गति में स्पष्ट होता है।
मानवीयतापूर्ण सभ्यता व्यवस्था गति में स्पष्ट है।
7.2 (1) न्याय
संबंधों सहज अनुबंध मूल्य निर्वाह करने में प्रतिज्ञा उपयोगिता-पूरकता विधि से पहचान, मूल्यों का निर्वाह फलस्वरूप मानव संबंधों में परस्पर तृप्ति, मानवेत्तर प्रकृति सहज संबंधों में संतुलन, अखण्ड समाज दश सोपानीय व्यवस्था, सार्वभौम - सर्व मानव स्वीकृत अथवा स्वीकृति योग्य है।
सहअस्तित्व संबंध
भौतिक, रासायनिक, जागृत-जीवन क्रिया का संबंध पूर्वक मानव संबंध सार्थक प्रयोजन सहज स्थिति गति है।
7.2 (2) सुरक्षा
जागृत मानव सहज तन-मन-धन रुपी अर्थ का सदुपयोग विधि से ही सुरक्षा प्रमाणित होता है। हर नर-नारी जागृति पूर्वक अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था सूत्र व्याख्या परंपरा में होना सार्वभौम न्याय सुरक्षा है।
7.2 (3) न्याय-सुरक्षा सार्थकता मूल्यांकन-विधि
- सहअस्तित्व में हर मानव जागृति सहज वर्तमान ही ज्ञान सम्मत इच्छा-क्रिया व व्यवहार प्रमाण न्याय सुरक्षा है।
- सहअस्तित्व में जागृति सहज प्रमाण परंपरा ही संबंध, मूल्य, मूल्यांकन, परस्पर तृप्ति संतुलन न्याय सुरक्षा है।
सहअस्तित्व में, से, के लिए विकास क्रम, भौतिक-रासायनिक क्रिया, जीवन क्रियाकलाप, जीवनी क्रम जागृति क्रम, जीव चेतनावश भ्रमित मानव क्रिया, जागृति मानव चेतना सहज मानव व्यवहार कार्य को समझने के उपरान्त ही दृष्टा पद प्रमाणित होता है।