मानवीय संविधान

by A Nagraj

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7.1 (2) मानसिकता :- अनुभव मूलक प्रामाणिकता सहज प्रवृत्ति।

  • वर्चस्व जागृति सहज मानसिकता पूर्वक मूल्यांकन = संबंधों का निर्वाह करना समझदारी में, से, के लिए प्रमाण।
  • ज्ञान, विवेक, विज्ञान ही समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी व आचरण में श्रेष्ठता का सम्मान प्रतिष्ठा।
  • प्रतिभा अनुभव मूलक प्रमाणों को प्रमाणित करने की गति।
  • आहार-विहार-व्यवहार के आधार पर व्यक्तित्व।
  • व्यवहार में सामाजिक, अखण्ड समाज सूत्र व्याख्या के रूप में आचरण।
  • व्यवसाय (उत्पादन कार्य) में स्वावलम्बन सम्पूर्ण वर्चस्व है।

इस तरह सदा हर नर-नारी मूल्यांकन करने में समर्थ रहेंगे ही। ऐसी अर्हता मानवीय शिक्षा परंपरा में, से, के लिए सम्पन्न व सार्थक होता है।

हर नर-नारियों में, से, के लिए मूल्यांकन का आधार उपरोक्त बिन्दु है।

मूल्यांकन का उद्देश्य :- व्यवहार में सामाजिक, परिवार सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन में स्वावलम्बन पूर्वक समृद्धि सहित सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी के अर्थ में है।

7.1 (3) मानवीय-शिक्षा संस्कार पाठ्यक्रम में गुणात्मक परिवर्तन सूत्र

सम्पूर्ण आयाम

  • सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व स्थिर, विकास एवं जागृति निश्चित है सिद्धान्त का अध्ययन विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति सहज बोध सुलभ होने का अध्ययन है।
  • सहअस्तित्व में भौतिक-रासायनिक और जीवन पद, जीवनी क्रम, जीवन जागृति क्रम, जीवन जागृति व निरंतरता सहज अध्ययन उपयोगिता-पूरकता सिद्धान्त जैसे तथ्यों के सभी आयामों के प्रधान मुद्दों को निम्नानुसार विकल्प रूप में सकारात्मक विधि से जागृति सहज सूत्रों को पहचाना गया है।

प्रचलित (विषय) :- जागृति के लिए वस्तु