मानवीय संविधान
by A Nagraj
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स्नातक = सनातन कालीन सत्य सहज वैभव में समझ को प्रमाणित करने हेतु सत्यापन।
6.5 (6) मानवीय संस्कार (मौलिकता) मानव चेतना सहज
अनुभव-प्रमाण
- माना हुआ को जानना एवं जाना हुआ को मानना।
- जानना-मानना, समझदारी-ईमानदारी, ज्ञान-विवेक-विज्ञान सम्पन्नता सहज प्रमाण वर्तमान।
मानव होने का, प्रयोजनों को, सहअस्तित्व होने का, चार अवस्था होने का, चार पद होने का, सामाजिक अखण्डता सहज, व्यवस्था सहज, सार्वभौमता सहज, उपयोगिता सहज, पूरकता सहज, प्रयोजनों को जानना-मानना सहज अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन जागृति है। जागृति के आधार पर परस्परता में पहचानना, निर्वाह करना सहज है।
- नाम = पहचानने संबोधन करने के अर्थ में।
- जाति = मानव जाति के अर्थ में अखण्ड समाज।
- धर्म = सुख-शांति के अर्थ में समाधान, समृद्धि एवं सार्वभौम व्यवस्था के अर्थ में समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व में वर्तमान सहज प्रमाण।
- कर्म = परिवार सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन के रूप में (समृद्धि)।
- शिक्षा = ज्ञान, विवेक, विज्ञान सम्मत कार्य व्यवहार पूर्वक जिम्मेदारी भागीदारी के रूप में मानवत्व सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी स्पष्ट होना।
- विवाह = समाधान, समृद्धि पूर्वक मानवीयता पूर्ण आचरण सहित अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी, एक पत्नी, एक पति के रूप में निर्वाह करने की प्रतिज्ञा संकल्प व निष्ठा के अर्थ में मौलिक अधिकार है।
6.5 (7) भाषा-विधि