मानवीय संविधान

by A Nagraj

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तात्विक अर्थ में मानवीय शिक्षा = अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन सहज, ‘मध्यस्थ दर्शन’ सहअस्तित्ववादी विधि पूर्वक चेतना विकास मूल्य शिक्षा अध्ययन।

बौद्धिक अर्थ में मानवीय शिक्षा = ज्ञान, विवेक, विज्ञान सहज शिक्षा संस्कार परंपरा।

व्यवहारिक अर्थ में मानवीय शिक्षा = अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी करने में प्रतिबद्धता पूर्ण शिक्षा।

तात्विक अर्थ में संस्कार = जीवन मूल्य, मानव मूल्य, स्थापित मूल्य एवं शिष्ट मूल्य का धारक-वाहकता।

बौद्धिक अर्थ में संस्कार = शिक्षा संस्कारों में पारंगत रहना, करना और कराने के लिए सहमत रहना।

व्यवहारिक अर्थ में संस्कार = हर उत्सवों में मानव लक्ष्य, जीवन मूल्य संगत विधि से व्यवस्था व समग्र व्यवस्था में भागीदारी की दृढ़ता व स्वीकृति को संप्रेषित, प्रकाशित करना, कराना, करने के लिए सहमति होना, जिसमें गीत, संगीत, वाद्य, नृत्य, साहित्य, कला वैभव समाहित रहना।

सार्वभौम व्यवस्था विधि से ही मानवीय शिक्षा-संस्कार का लोकव्यापीकरण होता है। यही मौलिक अधिकार का स्त्रोत है।

मानवीयतापूर्ण परंपरा, दश सोपानीय व्यवस्था में भागीदारी यह सब मौलिक अधिकार है।

6.5 (1) पर्यावरण सुरक्षा

धरती के वातावरण अर्थात् वायु मंडल को पवित्र रखने, धरती को पवित्र, ऋतु संतुलन सुरक्षित रखने, वन खनिज को संतुलित बनाये रखने में प्रमाणित होना यह मौलिक अधिकार है।

सर्व मानव मानवीयता पूर्ण आचरण सम्पन्न रहना ही समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व परंपरा के रूप में वर्तमान प्रमाण मौलिक अधिकार है।

6.5 (2) मानवीय व्यवसाय